प्राचीन काल में ऋषि अथर्वा एवं माता शांति के पुत्र परम तपस्वी महर्षि दधीचि का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दधीचि जयंती के रूप में मनाया जाता है। अपने अपकारी शत्रु के भी हितों की रक्षा हेतु सर्वस्व त्याग करने वाले महर्षि दधीचि जैसा उदाहरण संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलता है।
महर्षि दधीचि की हड्डियों से देवराज इंद्र के वज्र का निर्माण हुआ और असुर वृत्रासुर का वध हुआ। इस प्रकार एक महान परोपकारी ऋषि के अपूर्व त्याग एवं निस्वार्थ दान से देवराज इंद्र बच गए तीनों लोकों की रक्षा हुई तथा इंद्र को उनका स्थान पुन: प्राप्त हुआ।
सुरुआत तिथि | भाद्रपद शुक्ला अष्टमी |
कारण | महर्षि दधीचि जन्मदिवस |
उत्सव विधि | भजन-कीर्तन |
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