Shri Hanuman Bhajan

अर्जुन व कर्ण पर विचारों का सम्मोहन - प्रेरक कहानी (Arjun And Karn Par Vicharon Ka Sammohan)


Add To Favorites Change Font Size
विचारों को बार-बार दोहराने यानी विचारों के सम्प्रेषण जिसे इंग्लिश में अफ्फर्मटिव कहा जाता हैं, इसके बारे में महाभारत के कृष्ण व अर्जुन के उदाहरण के साथ आपको बताएंगे, कि कैसे एक विचार को बार बार दोहराते रहने से वह विचार हमारे जिंदगी पर असर करता हैं। इसी बात से अनजान कई लोग रोजाना नकारात्मक विचारों को बार-बार सोच कर अपने जीवन को नर्क बना रहे हैं। तो सुनिए कैसे बार-बार बुरे विचारों को सोचने से हमारे जीवन में भी बुरा होने लगता हैं।
महाभारत में अर्जुन के सारथि भवान श्री कृष्ण थे, जो उसे युद्ध की पूरी अवधि में यही सन्देश देते रहे कि कौरवों की पराजय अवश्य होगी। अर्जुन! तुम महावीर हो! तुम कारण को मारने में अवश्य सफल रहोगे। तुम्हारे साथ सत्य की शक्ति हैं, परमात्मा की शक्ति हैं।

इसकी विपरीत कर्ण, अर्जुन से कहीं अधिक वीर और साहसी होने पर भी दुविधा में पड़ा रहा। उसकी माँ कुंती ने युद्ध से पूर्व यह वचन ले लिया कि वह युद्धभूमि में अर्जुन के सिवाय और किसी भाई को नहीं मारेगा।

जीवन भर सारथी पुत्र कहे जाने वाले महापराक्रमी कर्ण के मन में कितना द्वन्द और दुःख रहा होगा कि उसको जन्म देने वाली माता कुंती ने उसे अपना पुत्र स्वीकारा भी तो कब? जब वह अपने जीवन के सबसे भीषण और निर्णायक युद्ध महाभारत में कौरवों का सेनापति घोषित कर दिया गया। एक ओर अपने भाई और दूसरी ओर जीवनभर कठिनाइयों में साथ देनेवाले मित्र का प्रेम।

और उसने कर्तव्य पालन के नाते दुर्योधन का साथ देने का ही निर्णय किया। सारथी पुत्र विशेषण से युक्त कर्ण के सेनापति बन जाने के बाद भी कोई प्रतिष्ठित राजा उसका सारथी नहीं बनना चाहता था।

दुर्योधन ने अपने दबाव से मद्रदेश के राजा शल्य को उसका सारथी बनने के लिए विवश किया और शल्य जो नकुल तथा सहदेव पांडवों के सगे मामा थे, कभी नहीं चाहते थे कि कर्ण की अर्जुन पर विजय प्राप्त हो। इसके लिए उन्होने एक मनोवैज्ञानिक विधि अपनाई। कर्ण का रथ चलाते हुए भी वह उससे बार-बार यह कहते रहे कि तुम अर्जुन से हार जाओगे। इस बात को उन्होने अनेक प्रकार से इतनी बार कहा कि कर्ण भी कसमसा उठा।

इस तरह एक ओर अर्जुन था, जिसके सारथी योगिराज कृष्ण उसमें उत्साह आत्मविश्वाश और विजय के विचार तथा भावनाये भर रहे थे, तो दूसरी और दुविधाग्रस्त कर्ण था जिसके मन में शल्य हीनता, हताशा तथा हार के विचार भर रहा था। अंत में कर्ण अर्जुन के बाणों से धाराशायी हो गया और उसकी हार हो गयी।

इस कथा में एक मनोवैज्ञानिक सत्य छिपा हुआ हैं। वह सत्य है विचारों की शक्ति का। हम जिस विचार से सम्मोहित हो जाते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। हमारे मनोमस्तिष्क में दूसरों के द्वारा कही हुई बातों, दृश्यों स्मृतियों आदि के द्वारा भांति-भांति के विचार उठते रहते हैं।

इसीलिए मनोचिकित्सक तथा आध्यात्मिक सदैव स्वास्थ्य, सुख तथा सफलता के विचारों को रखने की सलाह देते हैं। इससे यह सिद्ध है कि हमारे मंगलमय विचार का शरीर तथा मन पर शुभ प्रभाव पड़ता हैं और अशुभ विचार का प्रभाव अशुभ पड़ता हैं।

इस तरह कर्ण और अर्जुन दोनों में विचारों का सम्प्रेषण किया गया, और जिसको जिस विचार का सम्प्रेषण दिया गया उसके साथ वैसे ही हुआ। हम रोजाना अपनी जिंदगी के बारे में कैसे महसूस करते हैं, यही हमारे आने वाले कल का निर्माण करता हैं। इसलिए हमेशा सकारात्मक रहे ताकि आपके जीवन में आने वाला पल आपको ढेर सारी प्रगति कराये।
यह भी जानें

Prerak-kahani Shri Krishna Prerak-kahaniKarn Prerak-kahaniArjun Prerak-kahaniMahabharat Prerak-kahaniShalya Prerak-kahaniSarthi Prerak-kahaniNakaratmakata Prerak-kahaniNegative Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

भाग्य में कितना धन है? - प्रेरक कहानी

हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है। किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता। लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया, मैंने कमाया, मेरा है, मै कमा रहा हूँ, मेरी वजह से हो रहा है।

विद्वत्ता पर कभी घमंड न करें - प्रेरक कहानी

महाकवि कालिदास रास्ते में थे। प्यास लगी। वहां एक पनिहारिन पानी भर रही थी।
कालिदास बोले: माते! पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।

युधिष्ठिर को कलयुग का पूर्ण आभास था

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था। पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे।...

मृत्यु से भय कैसा? - प्रेरक कहानी

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक (सर्प) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया..

शुभचिन्तक की अज्ञानवस भी उपेक्षा न करें - प्रेरक कहानी

सच्चे शुभचिन्तक की अज्ञानवस भी उपेक्षा न करें - एक कुम्हार को मिट्टी खोदते हुए अचानक एक हीरा मिल गया, उसने उसे अपने गधे के गले में बांध दिया...

सेवा का समर्पण भाव - प्रेरक कहानी

एक बार एक राजा भोजन कर रहा था, अचानक खाना परोस रहे सेवक के हाथ से थोड़ी सी सब्जी राजा के कपड़ों पर छलक गई। राजा की त्यौरियां चढ़ गयीं।

दान करने से वस्तु घटती नहीं - प्रेरक कहानी

एक दयालु नरेश - एक राजा बड़े धर्मात्मा और दयालु थे, किंतु उनसे भूलसे कोई एक पाप हो गया था। जब उनकी मृत्यु हो गयी, तब उन्हें लेने यमराजके दूत आये।..

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Om Jai Jagdish Hare Aarti - Om Jai Jagdish Hare Aarti
Bhakti Bharat APP