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✨कुशोत्पाटिनी अमावस्या - Kushotpatini Amavasya

Kushotpatini Amavasya Date: Monday, 2 September 2024
Kushotpatini Amavasya

भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन वर्ष भर के लिए पुरोहित नदी, पोखर, जलाशय आदि से कुशा घास एकत्रित कर घर में रखते हैं। कुशा घास का प्रयोग कर्मकांड कराने में किया जाता है।

कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

कुशोत्पाटिनी अमावस्या का महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुशा नामक घास को उखाड़ने से यह वर्ष भर कार्य करती है तथा पूजा पाठ कर्म कांड सभी शुभ कार्यों में आचमन में या जाप आदि करने के लिए कुशा इसी अमावस्या के दिन उखाड़ कर लाई जाती है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है। इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। यदि भाद्रपद माह में सोमवती अमावस्या पड़े तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं।

संबंधित अन्य नामकुशाग्रहणी अमावस्या
शुरुआत तिथिभाद्रपद कृष्ण अमावस्या
कारणवर्ष भर उपयोग के लिए कुशा एकत्र करने हेतु।
उत्सव विधिपूजा, भजन-कीर्तन, कथा।

Kushotpatini Amavasya in English

Bhadrapada Krishna Amavasya is called Kushotpatini Amavasya. On this day, for the whole year, the priests collect kusha grass from the river, pond, reservoir etc. and keep it in the house.

कुशा उत्पत्ति कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक समय हिरण्यकश्यप के बड़े भाई हिरण्याक्ष ने धरती का अपहरण कर लिया। हिरण्याक्ष पृथ्वी को पताल लोक ले गया राक्षस राज इतना शक्तिशाली था कि उसका कोई विरोध तक ना कर सका। तब धरती को मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया तथा हिरण्याक्ष का वध कर धरती को मुक्त कराया। तथा पृथ्वी को पुनः अपनी पूर्व अवस्था में स्थापना किया।

पृथ्वी की स्थापना करने के बाद भगवान वाराह बहुत भीग गए थे जिसके कारण उन्होंने अपने शरीर को बहुत तेज झटका, झटकने से उनके रोए टूटकर धरती पर जा गिरे जिससे कुशा की उत्पत्ति हुई। कुशा की जड़ में भगवान ब्रह्मा, मध्य भाग में भगवान विष्णु तथा शीर्ष भाग में भगवान शिव विराजते हैं।

मान्यातानुसार कुशा को किसी साफ-सुथरे जल श्रोत अथवा पोखर से प्राप्त करना चाहिए। स्वयं को पूर्व की दिशा की तरफ मुंह करना चाहिए तथा अपने हाथ से कुशा को धीरे-धीरे उखाड़ना चाहिए है। ध्यान रहे कि यह साबुत ही रहे ऊपर की नोक भी ना टूटने पाए।

कुशा का चिकित्सा में प्रयोग

कुशा का प्रयोग प्राचीन काल से चिकित्सा एवं धार्मिक कार्यों में किए जाने का वर्णन है। मूत्रविरेचनीय तथा स्तन्यजनन आदि महाकषायों में कुश के प्रयोग का वर्णन मिलता है।

कुशा के अन्य नाम
कुश का वानस्पतिक नाम डेस्मोस्टेकिया बाईपिन्नेटा है। कुशा को अंग्रेजी में सैक्रिफिशियल ग्रास कहते हैं. भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में कई नामों से कुशा को कुश, सूच्याग्र, पवित्र, यज्ञभूषण, कुस, दर्भाईपुल, दर्भा तथा हल्फा ग्रास के नाम से भी जाना जाता है।

संबंधित जानकारियाँ

भविष्य के त्यौहार
23 August 202511 September 202631 August 2027
आवृत्ति
वार्षिक
समय
1 दिन
शुरुआत तिथि
भाद्रपद कृष्ण अमावस्या
समाप्ति तिथि
भाद्रपद कृष्ण अमावस्या
महीना
अगस्त / सितंबर
कारण
वर्ष भर उपयोग के लिए कुशा एकत्र करने हेतु।
उत्सव विधि
पूजा, भजन-कीर्तन, कथा।
महत्वपूर्ण जगह
घर, तालाब, झरने, नदी, जल श्रोत।
पिछले त्यौहार
14 September 2023, 27 August 2022, 7 September 2021
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