भक्त इन पंक्तियां को स्तुति श्री हिंगलाज माता और श्री विंध्येश्वरी माता की आरती के रूप मे प्रयोग करते हैं:
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ।
ले तेरी भेंट चडाया ॥
॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी..॥
सुवा चोली तेरी अंग विराजे ।
केसर तिलक लगाया ॥
॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी..॥
नंगे पग मां अकबर आया ।
सोने का छत्र चडाया ॥
॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी..॥
ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया ।
निचे शहर बसाया ॥
॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी..॥
सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये ।
कालियुग राज सवाया ॥
॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी..॥
धूप दीप नैवैध्य आर्ती ।
मोहन भोग लगाया ॥
॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी..॥
ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया ।
मनवंचित फल पाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया ॥
AartiMaa Durga AartiMata AartiNavratri AartiMaa Sherawali AartiDurga Puja AartiMaa Durga AartiJagran AartiMata Ki Chauki AartiShukravar AartiFriday AartiVindhyeshwari AartiMaa Hinglaj AartiNavratri AartiGupt Navratri Aarti
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।