श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: पद 104 (Shri Ramcharitmanas: Ayodhya Kand: Pad 104)


चौपाई:
गंग बचन सुनि मंगल मूला ।
मुदित सीय सुरसरि अनुकुला ॥
तब प्रभु गुहहि कहेउ घर जाहू ।
सुनत सूख मुखु भा उर दाहू ॥1॥दीन बचन गुह कह कर जोरी ।
बिनय सुनहु रघुकुलमनि मोरी ॥
नाथ साथ रहि पंथु देखाई ।
करि दिन चारि चरन सेवकाई ॥2॥

जेहिं बन जाइ रहब रघुराई ।
परनकुटी मैं करबि सुहाई ॥
तब मोहि कहँ जसि देब रजाई ।
सोइ करिहउँ रघुबीर दोहाई ॥3॥

सहज सनेह राम लखि तासु ।
संग लीन्ह गुह हृदय हुलासू ॥
पुनि गुहँ ग्याति बोलि सब लीन्हे ।
करि परितोषु बिदा तब कीन्हे ॥

दोहा:
तब गनपति सिव सुमिरि
प्रभु नाइ सुरसरिहि माथ ।
सखा अनुज सिया सहित
बन गवनु कीन्ह रधुनाथ ॥104॥
Shri Ramcharitmanas: Ayodhya Kand: Pad 104 - Read in English
Gang Bachan Suni Mangal Mula । Mudit Seey Surasari Anukula ॥
अर्थात
मंगल के मूल गंगाजी के वचन सुनकर और देवनदी को अनुकूल देखकर सीताजी आनंदित हुईं। तब प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने निषादराज गुह से कहा कि भैया! अब तुम घर जाओ! यह सुनते ही उसका मुँह सूख गया और हृदय में दाह उत्पन्न हो गया॥1॥

गुह हाथ जोड़कर दीन वचन बोला- हे रघुकुल शिरोमणि! मेरी विनती सुनिए। मैं नाथ (आप) के साथ रहकर, रास्ता दिखाकर, चार (कुछ) दिन चरणों की सेवा करके-॥2॥

हे रघुराज! जिस वन में आप जाकर रहेंगे, वहाँ मैं सुंदर पर्णकुटी (पत्तों की कुटिया) बना दूँगा। तब मुझे आप जैसी आज्ञा देंगे, मुझे रघुवीर (आप) की दुहाई है, मैं वैसा ही करूँगा॥3॥

उसके स्वाभाविक प्रेम को देखकर श्री रामचन्द्रजी ने उसको साथ ले लिया, इससे गुह के हृदय में बड़ा आनंद हुआ। फिर गुह (निषादराज) ने अपनी जाति के लोगों को बुला लिया और उनका संतोष कराके तब उनको विदा किया॥4॥

तब प्रभु श्री रघुनाथजी गणेशजी और शिवजी का स्मरण करके तथा गंगाजी को मस्तक नवाकर सखा निषादराज, छोटे भाई लक्ष्मणजी और सीताजी सहित वन को चले॥104॥
Granth Ramcharitmanas GranthAyodhya Kand GranthTulsidas Ji Rachit Granth
अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..