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साधु संगत से चोर ने चोरी छोड़ी - प्रेरक कहानी (Sadhu Sangat Se Chor Ne Chori Chhodi)


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एक घड़ी आधी घड़ी, आधी की पुनि आध,
तुलसी संगत साधु की, काटे कोटि अपराध ।
एक डाकू था, जो लूट पाट करता था। एक बार एक गांव से धन लूटकर वो भाग रहा था कि घोड़े पर से गिर कर घायल हो गया। उसने देखा पास में ही एक साघू की कुटिया है, धन को जमीन मे गाढ कर वो साधु की कुटिया में गया।

साधु रात्रि भोजन हेतु ही बैठे थे। दरवाजे पर दस्तक सुन उन्होंने कहा, जो कोई भी है, अन्दर आ जाओ। डाकू अन्दर गया तो साधु ने उसे भी बैठने के लिए आसन दिया, और पहले उसके समक्ष भोजन परोसा, फिर स्वयं लिया।

साधु ने उसे भोजन प्रारम्भ करने को कहा- आप अतिथि है इसलिए आप ईश्वर सामान है, आप पहले भोजन आरंभ करे।

डाकू को आजतक किसी ने इतने सम्मान से ना कहा था और ना ही खिलाया था। डाकू ने भोजन किया।

साधु ने एक चटाई उसके लिए बिछा दी और कहा रात में आप कहां जाइएगा तो यही विश्राम कर लीजिए।

डाकू थोड़ा घायल था, तो चलने में उसे तकलीफ़ हो रही थी, जैसे ही साघु को उसके ज़ख्म का पता चला, उसका उपचार करने लगे। कुछ पत्तो को पीसकर उसका रस लेप करके एक कपड़े से उसके ज़ख्म पर बांधा। और सहारा देकर उसे चटाई पर लिटाया।

डाकू साधु की उदारता से बहुत प्रभावित हुआ, उसने कहा, बाबा आप कितने संतुष्ट और उदार व्यक्तित्व के स्वामी है। आप में दया की भावना है। क्या आपको कभी धन की लालसा नहीं होती?

साधु बोले- धन तो नश्वर है बालक, और जो चीज नष्ट हो जाए उसके लिए लालसा करना विनाश की ओर अग्रसर होना है। लालसा करनी है तो उन अनश्वर अनादि और अविनाशी ईश्वर की करो, जो एकमात्र सत्य है।

डाकू को साधु की बाते सुन खुद पर लज्जा आ रही थी, कि उसने आजतक चोरी, डाका जैसे बुरे कार्य ही किए है। फिर भी उसके जीवन में शांति और संतुष्टि नहीं है। डाकू अपने सारे अपराधों की क्षमा साधु से मांगने हेतु उनके चरणों में गिर पड़ा, और साधु को अपनी सच्चाई बतलाई। और कहा- मै आपकी उदारता से खुद की नजरो मे लज्जित हूं। आज से और अभी से सबकुछ छोड़कर एक अच्छा इंसान बनना चाहता हूं।

शब्द कीर्तन: बिसर गई सब तात पराई, जब ते साध संगत मोहे पाई !

साधु विनम्रता से बोले, भागवत गीता में स्वयं ईश्वर कहते है, यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु समान मानने योग्य है।
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