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ऐसे ही होने चाहिए गुरु - प्रेरक कहानी (Yese Hi Hone Chahiye Guru)


ऐसे ही होने चाहिए गुरु - प्रेरक कहानी
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एक बार एक व्यक्ति की उसके बचपन के टीचर से मुलाकात होती है। वह उनके चरण स्पर्श कर अपना परिचय देता है। वे बड़े प्यार से पुछती है, अरे वाह, आप मेरे विद्यार्थी रहे है, अभी क्या करते हो, क्या बन गए हो?
मैं भी एक टीचर बन गया हूँ वह व्यक्ति बोला, और इसकी प्रेरणा मुझे आपसे ही मिली थी जब में 7 वर्ष का था। उस टीचर को बड़ा आश्चर्य हुआ, और वे बोली कि, मुझे तो आपकी शक्ल भी याद नही आ रही है, उस उम्र में मुझसे कैसी प्रेरणा मिली थी?

वो व्यक्ति कहने लगा कि, यदि आपको याद हो, जब में चौथी क्लास में पढ़ता था, तब एक दिन सुबह सुबह मेरे सहपाठी ने उस दिन उसकी महंगी घड़ी चोरी होने की आपसे शिकायत की थी।

आपने क्लास का दरवाजा बन्द करवाया और सभी बच्चो को क्लास में पीछे एक साथ लाइन में खड़ा होने को कहा था। फिर आपने सभी बच्चों की जेबें टटोली थी। मेरे जेब से आपको घड़ी मिल गई थी जो मैंने चुराई थी। पर चूंकि आपने सभी बच्चों को अपनी आंखें बंद रखने को कहा था, तो किसी को पता नहीं चला कि घड़ी मैंने चुराई थी।

टीचर उस दिन आपने मुझे लज्जा व शर्म से बचा लिया था। और इस घटना के बाद कभी भी आपने अपने व्यवहार से मुझे यह नही लगने दिया कि मैंने एक गलत कार्य किया था। आपने बिना कुछ कहे मुझे क्षमा भी कर दिया और दूसरे बच्चे मुझे चोर कहते इससे भी बचा लिया था।

ये सुनकर टीचर बोली, मुझे भी नही पता था बेटा कि वो घड़ी किसने चुराई थी। वो व्यक्ति बोला, नहीं टीचर, ये कैसे संभव है? आपने स्वयं अपने हाथों से चोरी की गई घड़ी मेरे जेब से निकाली थी।

टीचर बोली: बेटा मैं जब सबके पॉकेट चेक कर रही थी, उस समय मैने कहा था कि सब अपनी आंखे बंद रखेंगे, और वही मैंने भी किया, मैंने स्वयं भी अपनी आंखें बंद रखी थी।

ऐसे ही होने चाहिए गुरु, ऐसे ही होने चाहिए घर के बुजुर्ग, गांव के मुखिया।
जो सबको बैलेंस करें, कमियों को दूर करें, खूबियों को निखारें।

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