विनय पत्रिका: भैरवरूप शिव स्तुति: पद 2 (Vinay Patrika: Bhairavroop Shiv Stuti: Pad 2)


सदा
शंकरं, शंप्रदं, शंप्रदंसज्जनानंददं, सज्जनानंददंशैल-कन्या-वरं, परमरम्यं ।
काम-मदमोचनं, मदमोचनंतामरस-लोचनं, लोचनंवामदेवं भजे भावगम्यं ॥ १ ॥
कंबु-कंबुकुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, शिवंसुंदरं, सच्चिदानंदकंदं ।
सिद्ध-सनकादि-योगींद्र-वृंदारका, विष्णु-विष्णुविधि-वन्द्य चरणारविंदं ॥ २ ॥

ब्रह्म-कुल-वल्लभं, वल्लभंसुलभ मति दुर्लभं, दुर्लभंविकट-वेषं, वेषंविभुं, विभुंवेदपारं ।
नौमि करुणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्गुणंनिर्विकारं ॥ ३ ॥

लोकनाथं, लोकनाथंशोक-शूल-निर्मूलिनं, निर्मूलिनंशूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं ।
कालकालं, कलातीतमजरं हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं ॥ ४ ॥

तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, घटसंभवं सर्वगं, सर्वगं सर्वसौभाग्यमूलं ।
प्रचुर-भव-भंजनं, भंजनंप्रणत-जन-रंजनं, रंजनंदास तुलसी शरण सानुकूलं ॥ ५ ॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

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