जयति जय सुरसरी जगदखिल-पावनी ।
विष्णु-विष्णुपदकंज-मकरंद इव अम्बुवर वहसि, दुख दहसि, अघवृन्द-विद्राविनी ॥ १ ॥
मिलितजलपात्र-अजयुक्त-हरिचरणरज, विरज-वर-वारि त्रिपुरारि शिर-धामिनी ।
जह्नु-कन्या धन्य, पुण्यकृत सगर-सुत, भूधरद्रोणि-विद्दरणि, बहुनामिनी ॥ २ ॥
यक्ष, गंधर्व, गंधर्वमुनि, किन्नरोरग, दनुज, मनुज मज्जहिं सुकृत-पुंज युत-कामिनी ।
स्वर्ग-स्वर्गसोपान, विज्ञान-ज्ञानप्रदे, ज्ञानप्रदेमोह-मद-मदन-पाथोज-हिमयामिनी ॥ ३ ॥
हरित गंभीर वानीर दुहुँ तीरवर, मध्य धारा विशद, विश्व अभिरामिनी ।
नील-पर्यक-कृत-शयन सर्पेश जनु, जनुसहस सीसावली स्त्रोत सुर-स्वामिनी ॥ ४ ॥
अमित-महिमा, अमितरूप, भूपावली-मुकुट-मनिवंद्य त्रेलोक पथगामिनी ।
देहि रघुबीर-पद-प्रीति निर्भर मातु, मातुदासतुलसी त्रासहरणि भवभामिनी ॥ ५ ॥