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श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 24 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 24)


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चौपाई:
जदपि कहि कपि अति हित बानी ।
भगति बिबेक बिरति नय सानी ॥
बोला बिहसि महा अभिमानी ।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी ॥1॥
मृत्यु निकट आई खल तोही ।
लागेसि अधम सिखावन मोही ॥
उलटा होइहि कह हनुमाना ।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना ॥2॥

सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना ।
बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना ॥
सुनत निसाचर मारन धाए ।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥3॥

नाइ सीस करि बिनय बहूता ।
नीति बिरोध न मारिअ दूता ॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई ।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई ॥4॥

सुनत बिहसि बोला दसकंधर ।
अंग भंग करि पठइअ बंदर ॥5॥

दोहा:
कपि कें ममता पूँछ पर
सबहि कहउँ समुझाइ ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि
पावक देहु लगाइ ॥24॥
यह भी जानें
अर्थात

यद्यपि हनुमान्‌जी ने भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और नीति से सनी हुई बहुत ही हित की वाणी कही, तो भी वह महान्‌ अभिमानी रावण बहुत हँसकर (व्यंग्य से) बोला कि हमें यह बंदर बड़ा ज्ञानी गुरु मिला!॥1॥

रे दुष्ट! तेरी मृत्यु निकट आ गई है। अधम! मुझे शिक्षा देने चला है। हनुमान्‌जी ने कहा- इससे उलटा ही होगा (अर्थात्‌ मृत्यु तेरी निकट आई है, मेरी नहीं)। यह तेरा मतिभ्रम (बुद्धि का फेर) है, मैंने प्रत्यक्ष जान लिया है॥2॥

हनुमान्‌जी के वचन सुनकर वह बहुत ही कुपित हो गया। (और बोला-) अरे! इस मूर्ख का प्राण शीघ्र ही क्यों नहीं हर लेते? सुनते ही राक्षस उन्हें मारने दौड़े उसी समय मंत्रियों के साथ विभीषणजी वहाँ आ पहुँचे॥3॥

उन्होंने सिर नवाकर और बहुत विनय करके रावण से कहा कि दूत को मारना नहीं चाहिए, यह नीति के विरुद्ध है। हे गोसाईं। कोई दूसरा दंड दिया जाए। सबने कहा- भाई! यह सलाह उत्तम है॥4॥

यह सुनते ही रावण हँसकर बोला- अच्छा तो, बंदर को अंग-भंग करके भेज (लौटा) दिया जाए॥5॥

मैं सबको समझाकर कहता हूँ कि बंदर की ममता पूँछ पर होती है। अतः तेल में कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूँछ में बाँधकर फिर आग लगा दो॥24॥

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