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तारतम सागर (Taratam Sagar)

तारतम सागर
श्री तारतम सागर श्री कृष्ण प्रणामी धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है। इस महान ग्रन्थ को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है जैसे तारतम सागर कुलजाम स्वरूप, तारतम वाणी, श्री मुखवाणी, श्री स्वरूप साहिब। इसे विक्रम संवत 1715 में महामती प्राणनाथ जी ने लिखा था।
तारतम सागर का वर्णन
श्री तारतम सागर में 18,758 चौपाइयां हैं। इस श्री तारतम सागर में रास, प्रकाश, शत्रुतु, कलश, सनंध, किरंतन, अवकाल, खिलवत, परिक्रमा, सागर, सिंगार, सिंधी, मरफत सागर और कयामतनामा जैसी 14 कृतियां हैं।

इस वाणी के प्रथम चार ग्रन्थों- रस, प्रकाश, शत्रुतु और कलश में हिन्दू पक्ष का ज्ञान है। सानंद, खुलशा, मरफत सागर और कयामतनामा, कतेब पक्ष और खिलवत, परिक्रमा, सागर, सिंगार और सिंधी में परमधाम का ज्ञान है। किरंतन ग्रन्थ में सभी विषयों का योग है।

साहित्य के इस महान भण्डार में इस मायावी संसार के दुःख-दर्दों से व्यथित और पीड़ित आत्माओं को सुख-शांति प्रदान करने की अद्भुत शक्ति है। इसने उन्हें चिन्मय के दिव्य धाम के साथ-साथ सर्वोच्च भगवान तक पहुँचने का एक आसान रास्ता दिखाया है। इसके अतिरिक्त तत्कालीन समाज की धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं का भी समाधान है। यह अमूल्य और अतुलनीय ग्रन्थ सिंधी, जट्टी, हिन्दी, उर्दू और फारसी भाषाओं से सज्जित हिन्दी साहित्य का अखूट भंडार है।

Taratam Sagar in English

Shri Tartam Sagar is the main book of Shri Krishna Pranami religion. This great book is also known by different names like Tartam Sagar Kuljam Swaroop, Tartam Vani, Shri Mukhvani, Shri Swaroop Sahib. It was written by Mahamati Prannath ji in Vikram Samvat 1715.
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