हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥
हरि तुम हरो जन की भीर...
भगत कारण रूप नरहरि धर्यो आप शरीर॥
हिरण्यकश्यप मारि लीन्हो धर्यो नाहिन धीर॥
हरि तुम हरो जन की भीर...
बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक:
यहाँ साझा करें।