दूर्वा अष्टमी एक हिंदू अनुष्ठान है जो दूर्वा घास की पूजा के लिए समर्पित है, जिसका हिंदू परंपरा में विशेष आध्यात्मिक और औषधीय महत्व है। यह दिन विशेष रूप से भगवान गणेश से जुड़ा हुआ है, जिन्हें प्रार्थना के दौरान दूर्वा (एक प्रकार की पवित्र घास) चढ़ाई जाती है।
दूर्वा अष्टमी के बारे में मुख्य विवरण:
दूर्वा अष्टमी हिंदू महीने भाद्रपद में शुक्ल पक्ष (चंद्रमा का बढ़ता चरण) की अष्टमी (आठवें दिन) को पड़ता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में पड़ता है। पूजे जाने वाले देवता भगवान गणेश है, हालांकि कुछ क्षेत्र इस अनुष्ठान को देवी दुर्गा या शक्ति से भी जोड़ते हैं। दूर्वा अष्टमी के दिन मंत्रों का जाप करते हुए भगवान गणेश को दूर्वा घास की 21 पत्तियाँ चढ़ाना। गणेश पूजा में 21 की संख्या प्रतीकात्मक है।
दूर्वा अष्टमी का महत्व:
❀ हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान दूर्वा घास निकली थी और इसे पवित्र माना जाता है।
❀ किंबदंती यह भी है की समुद्र मंथन के समय भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (कछुआ) लिया था। कूर्म अवतार कर भगवान विष्णु ने मन्दराचल पर्वत को धारण किया था। इस दौरान उनके रोम से पृथ्वी लोक पर घास उत्पन्न हुए थे।
❀ गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से विघ्न दूर होते हैं और अच्छी सेहत और समृद्धि आती है।
❀ माना जाता है कि दूर्वा घास (सिनोडोन डेक्टीलॉन) में ठंडक और शुद्ध करने वाले गुण होते हैं।
दूर्वा अष्टमी अनुष्ठान कैसे मनाया जाता है:
❀ सुबह जल्दी स्नान और शुद्धिकरण करें।
❀ पूजा स्थल को साफ करें और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
❀ प्रसाद तैयार करें, विशेष रूप से दूर्वा घास के 21 पत्ते, मोदक, फल और फूल।
❀ गणेश स्तोत्र या दूर्वा अष्टमी व्रत कथा (कहानी) का पाठ करें।
❀ गणेश मंत्रों का जाप करते हुए दूर्वा घास चढ़ाएं।
❀ आरती और प्रसाद वितरण करें।
कहाँ पालन होता है दूर्वा अष्टमी:
दूर्वा अष्टमी विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा और दक्षिण भारत में लोकप्रिय है। भक्त अक्सर इस दिन व्रत रखते हैं।
शुरुआत तिथि | शुक्ल पक्ष अष्टमी भाद्रपद |
कारण | भगवान गणेश |
उत्सव विधि | मंदिर में प्रार्थना, व्रत, घर में पूजा |
Updated: Jul 08, 2025 17:53 PM