हे श्री कृष्ण! तुम सर्वज्ञ हो - प्रेरक कहानी (Hey Shri Krishna! Aap Sarvagya Ho)


एक वृद्ध महिला एक सब्जी की दुकान पर जाती है, उसके पास सब्जी खरीदने के पैसे नहीं होते है। वो दुकानदार से प्रार्थना करती है कि उसे सब्जी उधार दे दे पर दुकानदार मना कर देता है। उसके बार-बार आग्रह करने पर दुकानदार खीज कर कहता है, तुम्हारे पास कुछ ऐसा है , जिसकी कोई कीमत हो, तो उसे इस तराजू पर रख दो, मैं उसके वजन के बराबर सब्जी तुम्हे दे दूंगा।
वृद्ध महिला कुछ देर सोच में पड़ जाती है। क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था। कुछ देर सोचने के बाद वह, एक मुड़ा-तुड़ा कागज का टुकड़ा निकलती है और उस पर कुछ लिख कर तराजू पर रख देती है।

दुकानदार ये देख कर हंसने लगता है। फिर भी वह थोड़ी सब्जी उठाकर तराजू पर रखता है।
आश्चर्य..!!!
कागज वाला पलड़ा नीचे रहता है और सब्जी वाला ऊपर उठ जाता है। इस तरह वो और सब्जी रखता जाता है पर कागज वाला पलड़ा नीचे नहीं होता। तंग आकर दुकानदार उस कागज को उठा कर पढता है और हैरान रह जाता है। कागज पर लिखा था, हे श्री कृष्ण! तुम सर्वज्ञ हो, अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है।

दुकानदार को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वो उतनी सब्जी वृद्ध महिला को दे देता है। पास खड़ा एक अन्य ग्राहक दुकानदार को समझाता है, कि दोस्त, आश्चर्य मत करो। केवल श्री कृष्ण ही जानते हैं की प्रार्थना का क्या मोल होता है।

वास्तव में प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है। चाहे वो एक घंटे की हो या एक मिनट की। यदि सच्चे मन से की जाये, तो ईश्वर अवश्य सहायता करते हैं।

अक्सर लोगों के पास ये बहाना होता है, की हमारे पास वक्त नहीं। मगर सच तो ये है कि ईश्वर को याद करने का कोई समय नहीं होता।
Prerak-kahani Shri Krishna Prerak-kahaniBrij Prerak-kahaniBhagwat Prerak-kahaniJanmashtam Prerak-kahani
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

जीवन के बाद का प्रकृति नियम - प्रेरक कहानी

एक बार नारद जी ने भगवान से प्रश्न किया कि प्रभु आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं?

सत्संग के महत्व - प्रेरक कहानी

मैं काफी दिनों से आपके सत्संग सुन रहा हूं, किंतु यहां से जाने के बाद मैं अपने गृहस्थ जीवन में वैसा सदाचरण नहीं कर पाता, जैसा यहां से सुनकर जाता हूं।

मानव धर्म ही सर्वोपरि - प्रेरक कहानी

एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की।...

जब चंदन का बाग बना कोयला? - प्रेरक कहानी

एक राजा जो बहुत परोपकारी थे, उनके पास बहुत ही सुन्दर और विशाल चन्दन का बाग था जिससे हर वर्ष उनको सहस्त्रों रूपये का चन्दन अन्य देशावरों को जाता जिससे तेल और इत्र तैयार किये जाते थे..

दुर्लभ मनुष्य जीवन - प्रेरक कहानी

फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कुछ सौ-सौ के नोट गिने। सामान्य कटोरे की भाँति समझ कर कौड़ियां इक्कट्ठे करने में लगे हुए हैं।..