एक समय की बात है एक बार दांत और जीभ में भयंकर युध्द छिड़ गया।
दांत ने जीभ से कहा: अरे! तुम सिर्फ माँस के लोथड़े हो। तुममें तो कोई भी खुबी नहीं है। न ही तुम्हारा कोई रूप है और न ही कोई रंग। हमारे सभी दाँत को देख रहे हो कैसे मोतियोँ की भाँति चमक रहे हैं।
जीभ बेचारी ने कुछ भी नहीं कहा और वह चुप रही।
दाँत ने फिर जीभ से कहा: अरे, तुम चुप क्योँ हो! हमसे डर रही हो क्या? हम हैं ही इतने सुंदर तुम हमसे जलोगी ही ना और हम हैं इतने मजबुत कि डर तो तुम्हें आयेगी ही... जीभ, दांत की बातोँ को अनसुना करते हुये चुप रही।
दिन बीतते गये, समय अपनी रफ्तार के साथ आगे बढ़ता गया और देखते ही देखते कई माह और वर्ष बीत गये।
अब उम्र ढलने के साथ-साथ, धीरे-धीरे करके एक-एक दांत गिरते गये लेकिन होना क्या था जीभ वहीँ ज्योँ की त्योँ बनी रही। अब कुछ बचे हुए दाँत जब गिरने को हूये,
तब जीभ ने दांत से कहा: भैया बहुत दिन पहले आपने मुझसे कुछ कहा था। आज उन सबका उत्तर दे रही हूँ। इंसान के मुँह में आप सब दाँत मुझसे बहूत बाद में आये हैं। मै तो जन्म के साथ ही पैदा हूई हूँ। अब आयु में भी तुम मुझसे छोटे हो लेकिन छोटे होने के बावजुद भी एक-एक करके तुम सब मुझसे पहले विदा हो रहे हो! इसका कारण पता है?
दांत ने जीभ से अब विनम्र भाव से बोला: दीदी अब तक तो नहीं समझते थे पर अब बात समझ में आ गई। तुम कोमल और मुलायम हो और हम कठोर हैं। कठोर होने का दंड ही हमें मिला है।
मित्रो आप सब भी कोमल बनिये। कोमल से तात्पर्य है आपका व्यवहार रूखा न हो। आपके कार्य दुसरोँ को सुख ही प्रदान करें। जो इंसान जीभ के समान कोमल होता है, जिसकी वाणी मीठी होती है और जिसका व्यवहार कोमल तथा मिलनसार होता है उसे सभी पसंद करते हैं और उसे कभी भी कोई छोड़ना नहीं चाहता।
अपने रूप रंग या किसी भी गुण के दम पर कभी भी घमंड ना करें। किसी का भी अनादर न करें चाहे कोई आपसे उम्र में छोटा हो या फिर बड़ा।
ऋषिकेश के एक प्रसिद्द महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था। एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा: प्रिय शिष्यों मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है और अब मेरी आत्मा बार-बार मुझे इसे त्यागने को कह रही है, और मैंने निश्चय किया है कि आज के दिन जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा तब मैं इहलोक त्याग दूंगा।
गुरु की वाणी सुनते ही शिष्य घबड़ा गए, शोक-विलाप करने लगे, पर गुरु जी ने सबको शांत रहने और इस अटल सत्य को स्वीकारने के लिए कहा।
कुछ देर बाद जब सब चुप हो गए तो एक शिष्य ने पुछा: गुरु जी, क्या आप आज हमें कोई शिक्षा नहीं देंगे?
अवश्य दूंगा: गुरु जी बोले
मेरे निकट आओ और मेरे मुख में देखो।: गुरु जी बोले
एक शिष्य निकट गया और देखने लगा।
बताओ, मेरे मुख में क्या दिखता है, जीभ या दांत ?: गुरु जी बोले
उसमे तो बस जीभ दिखाई दे रही है: शिष्य बोला
फिर गुरु जी ने पुछा: अब बताओ दोनों में पहले कौन आया था ?
पहले तो जीभ ही आई थी: एक शिष्य बोला
अच्छा दोनों में कठोर कौन था?- गुरु जी ने पुनः एक प्रश्न किया।
एक शिष्य बोला: जी, कठोर तो दांत ही था।
दांत जीभ से कम आयु का और कठोर होते हुए भी उससे पहले ही चला गया, पर विनम्र व संवेदनशील जीभ अभी भी जीवित है, शिष्यों, इस जग का यही नियम है, जो क्रूर है, कठोर है और जिसे अपने ताकत या ज्ञान का घमंड है उसका जल्द ही विनाश हो जाता है अतः तुम सब जीभ की भांति सरल, विनम्र व प्रेमपूर्ण बनो और इस धरा को अपने सत्कर्मों से सींचो, यही मेरा आखिरी सन्देश है। और इन्ही शब्दों के साथ गुरु जी परलोक सिधार गए।
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करै आपहुँ शीतल होय।
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया
शेयर,
लाइक या
कॉमेंट जरूर करें!
भक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।