राग धनाश्री
देव, मोह-तम-तरणि, हर, रुद्र, संकर, शरण, हरण, मम शोक लोकाभिरामं ।
बाल-शशि-भाल, सुविशाल लोचन-कमल, काम-सतकोटि-लावण्य-धामं ॥ १ ॥
कंबु-कंबुकुंदेंदु-कर्पूर-विग्रह रुचिर, तरुण-रवि-कोटि तनु तेज भ्राजै ।
भस्म सर्वांग अर्धांग शैलात्मजा , व्याल-नृकपाल -माला विराजै ॥ २ ॥
मौलिसंकुल जटा-मुकुट विद्युच्छटा, तटिनि-वर-वारि हरि-चरण-पूतं ।
श्रवण कुंडल, गरल कंठ, करुणाकंद, सच्चिदानंद वंदेऽवधूतं ॥ ३ ॥
शूल-शायक पिनाकासि-कर, शत्रु-शत्रुवन-दहन इव धूमध्वज, वृषभ -यानं ।
व्याघ्र-गज-चर्म-चर्मपरिधान, विज्ञान-घन, सिद्ध-सुर-मुनि-मनुज-सेव्यमानं ॥ ४ ॥
तांडवित-नृत्यपर, डमरु डिंडिम प्रवर, अशुभ इव भाति कल्याणाराशी ।
महाकल्पांत ब्रह्मांड-मंडल-दवन, भवन कैलास, आसीन काशी ॥ ५ ॥
तज्ञ, सर्वज्ञ, यज्ञेश, अच्युत, विभो, विश्व भवदंशसंभव पुरारी ।
ब्रह्मेंद्र, चंद्रार्क, वरुणाग्नि, वसु, वसुमरुत, यम, अर्चि भवदंघ्नि सर्वाधिकारी ॥ ६ ॥
अकल, निरुपाधि, निर्गुण, निरंजन, ब्रह्म, कर्म-कर्मपथमेकमज निर्विकारं ।
अखिलविग्रह, उग्ररूप, शिव, भूपसुर, सर्वगत, शर्व सर्वोपकारं ॥ ७ ॥
ज्ञान-वैराग्य, धन-धर्म, धर्मकैवल्य-सुख, सुभग सौभाग्य शिव!सानुकूलं ।
तदपि नर मूढ आरूढ संसार-पथ, भ्रमत भव, विमुख तव पादमूलं ॥ ८ ॥
नष्टमति, दुष्ट अति, कष्ट-रत, खेद-गत, दास तुलसी शंभु-शंभुशरण आया ।
देहि कामारि! श्रीराम-पद-पंकज भक्ति अनवरत गत-भेद-माया ॥ ९ ॥