Shri Hanuman Bhajan
Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp ChannelDownload APP Now - Download APP NowDurga Chalisa - Durga ChalisaRam Bhajan - Ram Bhajan

भक्ति में आडंबर नहीं चाहिए होता (Bhakti Mein Aadambar Nahin Chaahie Hota)


Add To Favorites Change Font Size
काशी में, एक ब्राह्मण के सामने से एक गाय भागती हुई किसी गली में घुस गई। तभी वहां, एक आदमी आया उसने गाय के बारे में पूछा, पंडितजी माला फेर रहे थे।
इसलिए कुछ बोले नहीं, बस हाथ से उस गली का इशारा कर दिया जिधर गाय गई थी। पंडितजी इस बात से अंजान थे, कि वह आदमी कसाई है, और गौमाता उसके चंगुल से जान बचाकर भागी थीं। कसाई ने पकड़कर गोवध कर दिया।

अंजाने में हुए इस घोर पाप के कारण पंडितजी अगले जन्म में कसाई घर में जन्मे, और नाम पड़ा, सदना। पर पूर्वजन्म के पुण्यकर्मो के कारण, कसाई होकर भी, वह उदार और सदाचारी थे।

कसाई परिवार में जन्मे होने के कारण, सदना मांस बेचते तो थे। परन्तु भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी, एक दिन सदना को नदी के किनारे एक पत्थर पड़ा मिला। पत्थर अच्छा लगा, इसलिए वह उसे मांस तोलने के लिए अपने साथ ले आए।

वह इस बात से अंजान थे, कि यह वही शालिग्राम थे। जिन्हें वे पूर्वजन्म नित्य पूजते थे। सदना कसाई पूर्वजन्म के शालिग्राम को इस जन्म में, मांस तोलने के लिए बाँट के रूप में प्रयोग करने लगे।

आदत के अनुसार, सदना ठाकुरजी के भजन गाते रहते थे। ठाकुरजी भक्त की स्तुति का पलड़े में झूलते हुए आनंद लेते रहते।

बाँट का कमाल ऐसा था, कि चाहे आधा किलो तोलना हो, एक किलो या दो किलो, सारा वजन उससे पक्का हो जाता।

एक दिन सदना की दुकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले। उनकी नजर बाँट पर पड़ी, तो सदना के पास आए, और शालिग्राम को अपवित्र करने के लिए फटकारा।
उन्होंने कहा: मूर्ख, जिसे पत्थर समझकर मांस तौल रहे हो, वे शालिग्राम भगवान हैं।

ब्राह्मण ने सदना से शालिग्राम भगवान को लिया, और घर ले आए। गंगा जल से नहलाया, धूप, दीप, चन्दन से पूजा की। ब्राह्मण को अहंकार हो गया, जिस शालिग्राम से पतितों का उद्दार होता है, आज एक शालिग्राम का वह उद्धार कर रहा है।

रात को उसके सपने में ठाकुरजी आए, और बोले: तुम मुझे जहां से लाए हो, वहीँ मुझे छोड़ आओ। मेरे भक्त सदन कसाई की भक्ति में जो बात है, वह तुम्हारे आडंबर में नहीं।

ब्राह्मण बोला: प्रभु ! सदना कसाई पापकर्म करता है। आपका प्रयोग मांस तोलने में करता है, मांस की दुकान जैसा अपवित्र स्थान आपके योग्य नहीं है।

भगवान बोले: भक्ति में भरकर सदना मुझे तराजू में रखकर तोलता था, मुझे ऐसा लगता है, कि वह मुझे झूला रहा हो। मांस की दुकान में आने वालों को भी मेरे नाम का स्मरण कराता है। मेरा भजन करता है, जो आनन्द वहां मिलता था, वह यहां नहीं, तुम मुझे वही छोड़ आओ। ब्राह्मण शालिग्राम भगवान को वापस सदना कसाई को दे आए।

ब्राह्मण बोला: भगवान को तुम्हारी संगति ही ज्यादा सुहाई। यह तो तुम्हारे पास ही रहना चाहते हैं। ये शालिग्राम भगवान का स्वरुप हैं, हो सके तो इन्हें पूजना, बाट मत बनाना।

सदना ने यह सुना, और अनजाने में हुए अपराध को याद करके दुखी हो गया। सदना ने प्राश्चित का निश्चय किया, और भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए निकल पड़ा।

भगवान के दर्शन को जाते, एक समूह में शामिल हो गए। लेकिन लोगों के पूछने पर उसने बता दिया, कि वह कसाई का काम करता था। लोग उससे दूर-दूर रहने लगे। उसका छुआ खाते-पीते नहीं थे। दुखी सदना ने उनका साथ छोड़ा और शालिग्रामजी के साथ, भजन करता अकेले चलने लगा।

सदना को प्यास लगी थी, रास्ते में एक गांव में कुंआ दिखा, तो वह पानी पीने ठहर गया। वहां एक सुन्दर स्त्री पानी भर रही थी। वह सदना के सुंदर मजबूत शरीर पर रीझ गई। उसने सदना से कहा कि शाम हो गई है, इसलिए आज रात वह उसके घर में ही विश्राम कर लें ।

सदना को उसकी कुटिलता समझ में न आई, वह उसके अतिथि बन गए। रात में वह स्त्री अपने पति के सो जाने पर, सदना के पास पहुंच गई, और उनसे अपने प्रेम की बात कही। स्त्री की बात सुनकर सदना चौंक गए और उसे पतिव्रता रहने को कहा।

स्त्री को लगा, कि शायद पति होने के कारण सदना रुचि नहीं ले रहे, वह चली गई और सोते हुए पति का गला काट लाई।

सदना भयभीत हो गए, स्त्री समझ गई कि बात बिगड़ जाएगी इसलिए उसने रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया।पड़ोसियों से कह दिया, कि इस यात्री को घर में जगह दी थी। चोरी की नीयत से इसने मेरे पति का गला काट दिया।

सदना को पकड़ कर न्यायाधीश के सामने पेश किया गया। न्यायाधीश ने सदना को देखा तो ताड़ गए कि यह हत्यारा नहीं हो सकता। उन्होने बार-बार सदना से सारी बात पूछी। सदना को लगता था, कि यदि वह प्यास से व्याकुल गांव में न पहुंचते तो हत्या न होती। वह स्वयं को ही इसके लिए दोषी मानते थे, अतः वे मौन ही रहे।

न्यायाधीश ने राजा को बताया, कि एक आदमी अपराधी नहीं है,पर चुप रहकर एक तरह से अपराध की मौन स्वीकृति दे रहा है। इसे क्या दंड दिया जाना चाहिए?

राजा ने कहा: यदि वह प्रतिवाद नहीं करता, तो दण्ड अनिवार्य है, अन्यथा प्रजा में गलत सन्देश जाएगा, कि अपराधी को दंड नहीं मिला।

इसे मृत्युदंड मत दो, हाथ काटने का हुक्म दो। सदना का दायां हाथ काट दिया गया। सदना ने अपने पूर्वजन्म के कर्म मानकर चुपचाप दंड सहा, और जगन्नाथपुरी धाम की यात्रा शुरू की।

धाम के निकट पहुंचे, तो भगवान ने अपने सेवक राजा को प्रियभक्त सदना कसाई की सम्मान से अगवानी का आदेश दिया। प्रभु आज्ञा से, राजा गाजे-बाजे लेकर अगुवानी को आया।

सदना ने यह सम्मान स्वीकार नहीं किया तो स्वयं ठाकुरजी ने दर्शन दिए।
उन्हें सारी बात सुनाई: तुम पूर्वजन्म में ब्राहमण थे, तुमने संकेत से एक कसाई को गाय का पता बताया था। तुम्हारे कारण जिस गाय की जान गई थी, वही स्त्री बनी है, जिसके झूठे आरोपों से तुम्हारा हाथ काटा गया। उस स्त्री का पति पूर्वजन्म का कसाई बना था, जिसका वध कर गाय ने बदला लिया है।

भगवान जगन्नाथजी बोले: सभी के शुभ और अशुभ कर्मों का फल मैं देता हूँ। अब तुम निष्पाप हो गए हो। घृणित आजीविका के बावजूद भी, तुमने धर्म का साथ न छोड़ा। इसलिए, तुम्हारे प्रेम को मैंने स्वीकार किया।

मैं तुम्हारे साथ मांस तोलने वाले तराजू में भी प्रसन्न रहा। भगवान के दर्शन से सदना जी को मोक्ष प्राप्त हुआ।

भक्त सदना की कथा हमें बताती है, कि भक्ति में आडंबर नहीं, भावना बनाये रखती है। भगवान के नाम का गुणगान करना सबसे बड़ा पुण्य है।
यह भी जानें

Prerak-kahani Gau Mata Prerak-kahaniCow Prerak-kahaniJagannath Prerak-kahaniKasai Prerak-kahaniBrihaman Prerak-kahaniShaligram Prerak-kahaniKing Prerak-kahaniRaja Prerak-kahaniNyayadhish Prerak-kahaniJudge Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

हार से क्रोध का कनेक्शन - प्रेरक कहानी

बहुत समय पहले की बात है नवनीत। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ की निर्णायक थीं मंडन मिश्र की धर्म पत्नी देवी भारती। ...

बुरे विचारों से बचने के उपाय - प्रेरक कहानी

एक दिन आचानक किसी संत से उसका सम्पर्क हुआ। वह संत से उक्त अशुभ विचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करने लगा...

अपने शिल्पकार को पहचाने - प्रेरक कहानी

शिल्पकार ने थैले से छेनी-हथौड़ी निकालकर उसे तराशने के लिए जैसे ही पहली चोट की.. पत्थर जोर से चिल्ला पड़ा: उफ मुझे मत मारो।

कर्म फल भोगते हुए भी दुःखी नहीं हों - प्रेरक कहानी

कर्मफल का भोग टलता नहीं: राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया। राजकन्या पति के मरने का बहुत शोक करने लगी...

अपने प्रारब्ध स्वयं अपने हाथों से काटे - प्रेरक कहानी

प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है, ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है, लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा। यही कर्म नियम है।

दान की बड़ी महिमा - प्रेरक कहानी

उम्‍मीद की कोई किरण नजर नहीं आई। तभी एक मजदूरन ने मुझे आवाज लगाकर अपनी सीट देते हुए कहा मेडम आप यहां बैठ जाइए।..

तुलसीदास जी द्वारा श्री रामचरितमानस की रचना - सत्य कथा

दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन मे श्रीरामचरित मानस की रचना समाप्त हुई। संवत् १६३३ मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Durga Chalisa - Durga Chalisa
×
Bhakti Bharat APP