देवशिशु ने जगायी सदबुद्धि - प्रेरक कहानी (Devashishu Ne Jagayi Sadbuddhi)


यह घटना १९९० की है, जब मैं परम वन्दनीया माताजी से दीक्षा लेकर पहली बार नवरात्रि अनुष्ठान में था। इससे पहले कि मैं घटना का जिक्र करूँ, यह बता दूँ कि मेरे यहाँ बिना मांसाहार या मछली के भोजन नहीं बनता था। गायत्री दीक्षा लेने एवं नवरात्रि में अनुष्ठान करने के कारण मैंने मांस-मछली खाना बंद कर दिया। मैं एक बार दाल-रोटी-चटनी और शाम को फलाहार लेने लगा। इसके चलते परिवार के सभी सदस्य, माता-पिता भाई, मेरी अर्द्धांगिनी को छोड़ कर सभी, मुझसे नाराज रहने लगे और बातचीत बंद कर दी।
नवरात्रि के अंतिम दिन की बात है। मेरा पाँच वर्ष का भतीजा अमित अचानक किसी कारण से डर गया। वह बुरी तरह रोने-चिल्लाने लगा। जो भी उसे गोद में उठाने जाता, वह छिटककर उससे दूर जा खड़ा होता और आँखें फाड़कर उसकी ओर देखने लगता।

दादा-दादी, माता-पिता सभी परेशान हो गए। बच्चा जोर-जोर से चिल्ला रहा था: तुम लोगों के इतने बड़े-बड़े दाँत हैं, तुम लोग मुझे खा जाओगे, मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगा। सभी हतप्रभ थे, कुछ समझ नहीं पा रहे थे। मैं जप में बैठा था। करीब आधे घण्टे से यह सिलसिला चल रहा था।

आखिर में थक हारकर सब लोग मुझे पुकारने लगे: शंकर देखो न मुन्ने को क्या हो गया है। हम लोगों से डर रहा है। कहता है हमारे सिर पर सींग है, हमारे बड़े-बड़े दाँत हैं, हम उसे खा जाएँगे।

सभी लोगों का ध्यान दूसरी ओर देख बच्चा चुपचाप जाकर एक मेज के नीचे दुबककर बैठ गया। उसकी आँखों में आँसू भरे थे। बच्चे को क्या कष्ट है यही अज्ञात था। मैंने सोचा सबसे पहले उसका भय दूर करना चाहिए।

मैंने आँखें बंद कर गायत्री का ध्यान किया। एक हल्की सी आवाज सुनाई पड़ी: आचमनी का जल बच्चे को पिला। मैं आचमनी का जल लेकर उसके पास गया। मुझे पास देखकर बच्चा जल्दी से आकर मुझसे चिपक गया। गोद में उठाकर दुलारा तो देखा उसके मुख पर एक पूरी आश्वस्ति का भाव था। वह मेरे पास आकर अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था।

ध्यान में मिले निर्देश के अनुसार मैंने आचमनी का जल पिलाया। बच्चा गोद में ही सो गया। इस घटना के बाद मेरे प्रति परिवार का मनोभाव बदल गया। फिर उन्होंने भी माँसाहार त्याग दिया और दीक्षा लेकर गायत्री परिवार से जुड़ गए।

माँसाहार आसुरी प्रवृत्ति है यह मैंने पुस्तकों में तो पढ़ा था, पर सरल स्वभाव शिशु के स्वच्छ हृदय में यह बात इस प्रकार मूर्त्त रूप में प्रकट हुई कि मेरे परिवार का वातावरण ही बदल दिया। इसे मैं गायत्री उपासना का ही प्रतिफल मानता हूँ।

जयशंकर रावत आसनसोल (प.बंगाल)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
http://literature.awgp.org/book/adabhut_aashcharyajanak_kintu_satya/v2.10
Prerak-kahani Nonveg Prerak-kahaniGayatri Pariwar Prerak-kahaniGayatri Deeksha Prerak-kahaniMasahar Prerak-kahani
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

हार से क्रोध का कनेक्शन - प्रेरक कहानी

बहुत समय पहले की बात है नवनीत। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ की निर्णायक थीं मंडन मिश्र की धर्म पत्नी देवी भारती। ...

भगवन नाम का प्रताप - प्रेरक कहानी

एक व्यक्ति गाड़ी से उतरा। और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट में घुसा, जहाज़ उड़ने के लिए तैयार था, उसे किसी कार्यक्रम मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए आयोजित किया जा रहा था। वह अपनी सीट पर बैठा और हवाई जहाज उड़ गया।

तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता - सत्य कथा

श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता संत: मनुष्यों में सबसे प्रथम यह ग्रन्थ सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ मिथिला के परम संत श्रीरूपारुण स्वामीजी महाराज को।

तुलसीदास जी द्वारा भगवान् श्रीराम, लक्ष्मण दर्शन - सत्य कथा

चित्रकूटके घाट पर, भइ संतन की भीर । तुलसिदास चंदन घिसें, तिलक देन रघुबीर ॥..

आठवी पीढ़ी की चिन्ता - प्रेरक कहानी

आटा आधा किलो | सात पीढ़ी की चिंता सब करते हैं.. आठवी पीढ़ी की कौन करता है - एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया।