वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आने वाले इस हिंदू त्यौहार को अक्षय तृतीया अथवा अख तीज के नाम से जाना जाता है। अक्षय शब्द का अर्थ जो कभी भी कम न हो होता है। वैदिक ज्योतिष अक्षय तृतीया को सभी कु-प्रभावों से मुक्त शुभ दिन मानते हैं, अतः इस दिन किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करने के लिए किसी भी मुहूर्त की आवश्यकता को नही माना गया है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका फल अक्षय मिलता है अर्थात उनका पुण्य कभी भी कम नहीं होता है। इसलिए इस दिन किए गये जप, यज्ञ, पितृ-तर्पण, दान-पुण्य का लाभ कभी भी कम नहीं होता है, एवं हमेशा के लिए व्यक्ति के साथ ही रहता है।
वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की अक्षय तृतीया तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र के दिन अक्षय तृतीया पड़ना, बहुत ही शुभ माना जाता है।
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धन को अधिक महत्ता देने वाले ज्यादातर लोग, इस दिन सोना खरीदते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से आने वाले भविष्य में उनकी समृद्धि एवं धन की वृद्धि होती रहेगी।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग का आरंभ हुआ था। आमतौर पर अक्षय तृतीया एवं परशुराम जयंती एक ही दिन होती है, परन्तु तृतीया तिथि के प्रारंभ होने के आधार पर परशुराम जयंती, अक्षय तृतीया से एक दिन पूर्व भी हो सकती है। अक्षय-तृतीया के दिन बालक श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था।
संबंधित अन्य नाम | अक्षय तृतीया, आखा तीज, अख तीज |
सुरुआत तिथि | वैशाख शुक्ला तृतीया |
कारण | धर्म, पुण्य, धन और कर्म आदि अक्षय फल |
उत्सव विधि | उत्सव, व्रत, दान, पूजन |
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