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श्रीमद्‍भगवद्‍गीता: अर्जुनविषादयोग - श्लोक 30 (Shrimad Bhagwat Geeta: Arjun Visada Yog: Shlok 30)


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गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते ।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ॥
भावार्थ: हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ।
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Granth Bhagwat Geeta Granth

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