पितृ पक्ष - Pitru Paksha

सत्संग की सही शिक्षा - प्रेरक कहानी (Prerak Kahani: Satsang Ki Sahi Shiksha)


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एक संत ने अपने दो शिष्यों को दो डिब्बों में मूँग के दाने दिये और कहाः ये मूँग हमारी अमानत हैं।
ये सड़े गले नहीं बल्कि बढ़े-चढ़े यह ध्यान रखना। दो वर्ष बाद जब हम वापस आयेंगे तो इन्हें ले लेंगे।

संत तो तीर्थयात्रा के लिए चले गये। इधर एक शिष्य ने मूँग के डिब्बे को पूजा के स्थान पर रखा और रोज उसकी पूजा करने लगा।

दूसरे शिष्य ने मूँग के दानों को खेत में बो दिया। इस तरह दो साल में उसके पास बहुत मूँग जमा हो गये।

दो साल बाद संत वापस आये और पहले शिष्य से अमानत वापस माँगी तो वह अपने घर से डिब्बा उठा लाया और संत को थमाते हुए बोलाः

गुरूजी ! आपकी अमानत को मैंने अपने प्राणों की तरह सँभाला है। इसे पालने में झुलाया, आरती उतारी, पूजा- अर्चना की...

संत बोलेः अच्छा ! जरा देखूँ तो सही कि अन्दर के माल का क्या हाल है ?

संत ने ढक्कन खोलकर देखा तो मूँग में घुन लगे पड़े थे। आधे मूँग की तो वे चटनी बना गये, बाकी बचे-खुचे भी बेकार हो गये।

संत ने शिष्य को मूँग दिखाते हुए कहाः क्यों बेटा! इन्ही घुनों की पूजा अर्चना करते रहे इतने समय तक !

शिष्य बेचारा शर्म से सिर झुकाये चुप चाप खड़ा रहा।

इतने में संत ने दूसरे शिष्य को बुलवाकर उससे कहाः अब तुम भी हमारी अमानत लाओ।

थोड़ी देर में दूसरा शिष्य मूँग लादकर आया और संत के सामने रखकर हाथ जोड़कर बोलाः गुरूजी ! यह रही आपकी अमानत।

संत बहुत प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद देते हुए बोलेः बेटा ! तुम्हारी परीक्षा के लिए मैंने यह सब किया था।

मैं तुम्हें वर्षों से जो सत्संग सुना रहा हूँ, उसको यदि तुम आचरण में नहीं लाओगे, अनुभव में नहीं उतारोगे तो उसका भी हाल इस डिब्बे में पड़े मूँग जैसा हो जायेगा।
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