Shri Ram Bhajan

यज्ञ की सच्ची पूर्ण आहुति - प्रेरक कहानी (Yagy Main Sachchi Poornahuti)


Add To Favorites Change Font Size
एक बार युधिष्ठिर ने विधि-विधान से महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें दूर-दूर से राजा-महाराजा और विद्वान आए। यज्ञ पूरा होने के बाद दूध और घी से आहुति दी गई, लेकिन फिर भी आकाश घंटियों की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ी। जब तक घंटियां नहीं बजतीं, यज्ञ अपूर्ण माना जाता है। महाराज युधिष्ठिर को चिंता हुई। वह सोचने लगे कि आखिर यज्ञ में कौन सी कमी रह गई कि घंटियां सुनाई नहीं पड़ीं। उन्होंने भगवान कृष्ण से अपनी समस्या के बारे में बताया।
श्री कृष्ण ने कहा, किसी गरीब, सच्चे और निश्छल हृदय वाले व्यक्ति को बुला कर उसे भोजन कराएं। जब उनकी आत्मा तृप्त होगी तब आकाश घंटियां अपने आप बज उठेंगी। श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को ऐसे एक व्यक्ति के बारे में बताया। तब धर्मराज स्वयं उसकी खोज में निकल पड़े। आखिरकार उन्हें उस निर्धन की कुटिया मिल गई। युधिष्ठिर ने अपना परिचय देते हुए उससे प्रार्थना की - बाबा, आप हमारे यहां भोजन करने की कृपा करें।

पहले तो बाबा ने मना कर दिया लेकिन काफी प्रार्थना करने पर वह तैयार हो गये। युधिष्ठिर उन्हें लेकर यज्ञ स्थल पर आए। द्रौपदी ने अपने हाथ से स्वादिष्ट खाना बनाकर उन्हें खिलाया। भोजन करने के बाद उस व्यक्ति ने ज्यों ही संतुष्ट होकर डकार ली, आकाश की घंटियां गूंज उठीं। यज्ञ की सफलता से सब प्रसन्न हुए। युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा- भगवन, इस निर्धन व्यक्ति में ऐसी कौन सी विशेषता है कि उनके खाने के बाद ही यज्ञ सफल हो सका।

श्री कृष्ण ने कहा - धर्मराज, इस व्यक्ति में कोई विशेषता नहीं है, यह गरीब है। दरअसल आपने पहले जिन्हें भोजन कराया वे सब तृप्त थे। जो व्यक्ति पहले से तृप्त हैं, उन्हें भोजन कराना कोई विशेष उपलब्धि नहीं है। जो लोग अतृप्त हैं, जिन्हें सचमुच भोजन की जरूरत है, उन्हें खिलाने से उनकी आत्मा को जो संतोष मिलता है, वही सबसे बड़ा यज्ञ है। वही सच्ची आहुति है। आप ने जब एक अतृप्त व्यक्ति को भोजन कराया तभी देवता प्रसन्न हुए और सफलता की सूचक घंटियां बज गईं।
यह भी जानें
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

अहंकार का त्याग ही तपस्या का मूलमंत्र है - प्रेरक कहानी

निर्णय करने से पहले धर्मराज ने दोनों से कहा: मैं अपना निर्णय तो सुनाउंगा लेकिन यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो तो मैं अवसर देता हूं, कह सकते हो।...

आत्मविश्वास ना खोएं, ऊँचाइयाँ पाओगे - प्रेरक कहानी

एक बार एक युवक को संघर्ष करते-करते कई वर्ष हो गए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।...

भगवान् का विनिमय प्रस्ताव - प्रेरक कहानी

एक बार एक दुःखी भक्त अपने ईश्वर से शिकायत कर रहा था। आप मेरा ख्याल नहीं रखते, मैं आपका इतना बड़ा भक्त हूँ। आपकी सेवा करता हूँ, रात-दिन आपका स्मरण करता हूँ..

क्रोध मे हम, चिल्लाते क्यों हैं? - प्रेरक कहानी

जब वे लोग एक दुसरे से और ज्यादा प्रेम करते तब क्या होता हैं? वे कुछ बोलते नहीं बस फुसफुसाते हैं...

जिसका भी मनोबल जागा - प्रेरक कहानी

बचपन से ही उसे इस प्रकार से तैयार किया गया था कि युद्ध में शत्रु सैनिको को देखकर वो उनपर इस तरह टूट पड़ता कि देखते ही देखते शत्रु के पाँव उखड जाते।...

तुलसीदास जी द्वारा श्री रामचरितमानस की रचना - सत्य कथा

दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन मे श्रीरामचरित मानस की रचना समाप्त हुई। संवत् १६३३ मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।

श्री गणेश एवं बुढ़िया माई की कहानी

एक बुढ़िया माई थी। मिट्टी के गणेश जी की पूजा करती थी। रोज बनाए रोज गल जाए। एक सेठ का मकान बन रहा था..

Durga Chalisa - Durga Chalisa
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP