माँ जगदम्बे स्तुति (Maa Durga Stuti By Daksha Prajapati)


श्रीशिवमहापुराण के रुद्रसंहिता के अंतर्गत सतीखण्डः मे दक्ष प्रजापति द्वारा माँ जगदम्बा, माँ शिवा रूपा अथवा माँ दुर्गा की स्तुति।
दक्ष उवाच-
महेशानि नमस्तुभ्यं जगदम्बे सनातनि ।
कृपां कुरु महादेवि सत्ये सत्यस्वरूपिणि ॥
शिवा शांता महामाया योगनिद्रा जगन्मयी ।
या प्रोच्यते वेदविद्धिर्नमामि त्वां हितावहाम् ॥

यया धाता जगत्सृष्टी नियुक्तस्तां पुराकरोत् ।
तां त्वां नमामि परमां जगद्धात्रीं महेश्वरीम् ॥

यया विष्णुर्जगत्स्थित्यै नियुक्तस्तां सदाकरोत् ।
तां त्वां नमामि परमां जगद्धात्रीं महेश्वरीम् ॥

यया रुद्रो जगन्नाशे नियुक्तस्तां सदाकरोत् ।
तां त्वां नमामि परमां जगद्धात्रीं महेश्वरीम् ॥

रज:सत्त्वतमोरूपां सर्वकार्यकरीं सदा ।
त्रिदेवजननीं देवीं त्वां नमामि च तां शिवाम् ॥

यस्त्वां विचिंतयेद् देवि विद्याविद्यात्मिकां पराम् ।
तस्य भुक्तिश्च मुक्तिश्च सदा करतले स्थिता ॥

यस्त्वां प्रत्यक्षतो देवि शिवां पश्यति पावनीम् ।
तस्यावश्यं भवेन्मुक्तिर्विद्याविद्याप्रकाशिका ॥

ये स्तुवंति जगन्मातर्भवानीमंबिकेति च ।
जगन्मयीति दुर्गेति सर्वं तेषां भविष्यति ॥

[श्रीशिवमहापुराण / रुद्रसंहिता / सतीखण्डः / 14 / 28-36]
Maa Durga Stuti By Daksha Prajapati - Read in English
Daksh Uvach - Maheshani namastubhyam jagadambe sanatani। Kripam Kuru Mahadevi Satye Satyaswarupini ॥
हिंदी भावार्थ
दक्ष बोले-
हे महेशानि! हे सनातनि! हे जगदम्बे! आपको नमस्कार है, हे सत्ये! हे सत्यस्वरूपिणि! हे महादेवि! मेरे ऊपर दया करें ॥ २८

वेदके ज्ञाता जिन्हें शिवा, शान्ता, महामाया, योगनिद्रा तथा जगन्मयी कहते हैं, उन आप हितकारिणी देवीको मैं नमस्कार करता हूँ॥२९

जिन्होंने पूर्वकालमें ब्रह्माजीको उत्पन्नकर इस जगत्की सृष्टिके कार्यमें नियुक्त किया है, उन परमा जगन्माता आप महेश्वरीको मैं नमस्कार करता हूँ॥ ३०

जिन्होंने सदा संसारके पालनके लिये विष्णुको नियुक्त किया है, उन परमा जगन्माता आप महेश्वरीको मैं नमस्कार करता हूँ। जिन्होंने संसारके विनाशके लिये रुद्रको नियुक्त किया है, उन परमा जगन्माता आप महेश्वरीको मैं नमस्कार करता हूँ॥ ३१-३२

सत्त्व-रज-तमरूपोंवाली, सर्वदा समस्त कार्योंको साधनेवाली तथा तीनों देवताओंको उत्पन्न करनेवाली उन आप शिवादेवीको मैं नमस्कार करता हूँ॥३३

हे देवि! जो आपको विद्या-अविद्या-इन दोनों रूपोंसे स्मरण करता है, उसके हाथमें भोग तथा मोक्ष दोनों ही स्थित हो जाते हैं॥ ३४

हे देवि! जो परमपावनी शिवास्वरूपा आपका प्रत्यक्ष दर्शन करता है, उसे विद्या तथा अविद्याको प्रकाशित करनेवाली मुक्ति अपने-आप मिल जाती है॥ ३५

हे जगदम्बे! जो अम्बिका, जगन्मयी एवं दुर्गा-इन नामोंसे आप भवानीका स्तवन करते हैं, उनके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं॥ ३६
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