ॐ संगच्छध्वम् सं वद्धवम् सं वो मनाँसि जानताम् ।
देवा भागम् यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ॥ 1
समानो मन्त्र: समिति: समानी
समानं मन: सह चित्तमेषाम्
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये व:
समानेन वो हविषा जुहोमि ॥ 2
समानी व आकूति: समाना ह्र्दयानि व: ।
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति ॥ 3
॥ ॐ शांति: शांति: शांति: ॥
हे धर्मनिरत विद्वानों ! आप परस्पर एक होकर रहें, आपस में मिलकर प्रेम पूर्वक वार्तालाप करें। सामान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते है, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर विरोध त्याग करके अपना काम करें। 1
हम सबकी प्रार्थना एक सामान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण-मन-चित्त-विचार सामान हों। मैं सबके हित के लिए सामान मन्त्रों को अभिमंत्रित करके हवि प्रदान करता हूँ। 2
तुम सबके संकल्प एक सामान हों, तुम्हारे हृदय एक सामान हों और मन एक सामान हों, जिसके जिससे तुम्हारा कार्य परस्पर पूर्णरूप के संगठित हो। 3
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक:
यहाँ साझा करें।