Shri Krishna Bhajan

श्रीगोपाल जी (Shri Gopal Ji)


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भक्तमाल | श्रीगोपालजी
आराध्य - श्रीठाकुरजी
निवास स्थान - जोबनेर ग्राम
प्रसिद्ध - सन्त सेवा
भक्तमाल कथा
जोबनेर ग्रामवासी भक्त श्री गोपालजी ने भगवान् से बढ़कर भक्तों को इष्ट मानने की प्रतिज्ञा की थी और उसका पालन किया। आपके कुल में एक सज्जन काकाजी विरक्त-वैष्णव हो गये थे। उनने संतों के मुँख से इनकी निष्ठा की प्रशंसा सुनी कि भक्तोंको इष्टदेव मानते हैं। तब काकाजी श्रीगोपाल जी की परीक्षा लेने के विचार से उनके द्वार पर आये।

इन्हें आया देखकर श्रीगोपाल भक्तजी ने झट आकर सप्रेम साष्टांग दण्डवत्‌ प्रणाम किया- भगवन्‌! अपने निज घरमें पधारिये।
उन्होंने (परीक्षाकी दृष्टि से) उत्तर दिया कि- मेरी प्रतिज्ञा है कि मैं स्त्रीका मुख न देखूँगा। तुम्हारे घरके भीतर जाकर मैं अपनी इस प्रतिज्ञा को कैसे छोड़ दूँ?

तब श्रीगोपाल जी ने कहा - आप अपनी प्रतिज्ञा न छोड़िये। सभी स्त्रियां एक ओर घर में ही छिप जायेंगी। आपके सामने कोई भी नहीं आयेंगी। ऐसा कहकर घर जाकर उन्होंने सब स्त्रियोंको छिपा दिया। इसके उपरांत जी संत भगवन को घर ले गये। इसी बीच सन्त-दर्शनके भाव से या कौतुकवश एक स्त्रीने झाँककर देखा, स्त्रीके झांकते ही उन्होंने गोपाल भक्त के गाल पर एक तमाचा मारा
श्रीगोपाल जी के मनमें जरासा भी कष्ट नहीं हुआ वे हाथ जोड़कर बोले- महाराज जी! आपने एक कपोल को तमाचा प्रसाद दिया, वह तो कृतर्थ हो गया है। परन्तु दूसरा आपके कृपा प्रसादसे वंचित रह गया है। अत: उस दूसरे कपोल को रोष हो रहा है, कृपा करके इस कपोल पर भी एक तमाचा मारकर इसे भी कृतार्थ कर दीजिये।

प्रिय वाणी सुनकर उस वैष्णव संत के नेत्रों में आँसू भर आये। वह श्रीगोपाल जी के चरणों में लिपट गया और बोले- आपकी सन्तनिष्ठा अलौकिक है। मैंने आकर आपकी परीक्षा ली। आज मुझे आपसे बहुत बड़ी शिक्षा मिली कि भक्त को अति सहनशील होना चाहिए तथा वैष्णवों को भगवन से भी बढ़कर मानना चाहिए।
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