Hanuman Chalisa
Hanuman Chalisa - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa -

श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: पद 102 (Shri Ramcharitmanas: Ayodhya Kand: Pad 102)


Add To Favorites Change Font Size
चौपाई:
उतरि ठाड़ भए सुरसरि रेता ।
सीयराम गुह लखन समेता ॥
केवट उतरि दंडवत कीन्हा ।
प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा ॥1॥
पिय हिय की सिय जाननिहारी ।
मनि मुदरी मन मुदित उतारी ॥
कहेउ कृपाल लेहि उतराई ।
केवट चरन गहे अकुलाई ॥2॥

नाथ आजु मैं काह न पावा ।
मिटे दोष दुख दारिद दावा ॥
बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी ।
आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी ॥3॥

अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें ।
दीनदयाल अनुग्रह तोरें ॥
फिरती बार मोहि जे देबा ।
सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा ॥4॥

दोहा:
बहुत कीन्ह प्रभु लखन सियँ
नहिं कछु केवटु लेइ ।
बिदा कीन्ह करुनायतन
भगति बिमल बरु देइ ॥102॥
यह भी जानें
अर्थात

निषादराज और लक्ष्मणजी सहित श्री सीताजी और श्री रामचन्द्रजी (नाव से) उतरकर गंगाजी की रेत (बालू) में खड़े हो गए। तब केवट ने उतरकर दण्डवत की। (उसको दण्डवत करते देखकर) प्रभु को संकोच हुआ कि इसको कुछ दिया नहीं॥1॥

पति के हृदय की जानने वाली सीताजी ने आनंद भरे मन से अपनी रत्न जडि़त अँगूठी (अँगुली से) उतारी। कृपालु श्री रामचन्द्रजी ने केवट से कहा, नाव की उतराई लो। केवट ने व्याकुल होकर चरण पकड़ लिए॥2॥

(उसने कहा-) हे नाथ! आज मैंने क्या नहीं पाया! मेरे दोष, दुःख और दरिद्रता की आग आज बुझ गई है। मैंने बहुत समय तक मजदूरी की। विधाता ने आज बहुत अच्छी भरपूर मजदूरी दे दी॥3॥

हे नाथ! हे दीनदयाल! आपकी कृपा से अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। लौटती बार आप मुझे जो कुछ देंगे, वह प्रसाद मैं सिर चढ़ाकर लूँगा॥4॥

प्रभु श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी ने बहुत आग्रह (या यत्न) किया, पर केवट कुछ नहीं लेता। तब करुणा के धाम भगवान श्री रामचन्द्रजी ने निर्मल भक्ति का वरदान देकर उसे विदा किया॥102॥

Granth Ramcharitmanas GranthAyodhya Kand GranthTulsidas Ji Rachit Granth

अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस ग्रंथ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..

Hanuman Chalisa -
Hanuman Chalisa -
×
Bhakti Bharat APP