Download Bhakti Bharat APP
Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp ChannelDownload APP Now - Download APP NowDurga Chalisa - Durga ChalisaRam Bhajan - Ram Bhajan

एकलव्य द्वार द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में अंगुठा देने की पौराणिक कथा (Eklavya Dwara Dronacharya Ko Gurudakshina Me Angutha Dene Ki Katha)


एकलव्य द्वार द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में अंगुठा देने की पौराणिक कथा
Add To Favorites Change Font Size
माना जाता है कि निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के लिए संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर गुरू द्रोणाचार्य के पास गये परन्तु गुरू द्रोणाचार्य ने एकलव्य को निषाद पुत्र जानकर धनुर्विद्या सीखाने से इनकार कर दिया था क्योंकि गुरू द्रोणाचार्य हस्तिनापुर के सिंहासन के राजक॒मारों को धनुर्विद्या सीखाने के लिए वचनबद्ध थे। जिसके उपरान्त एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया और वन में लौटकर उनकी मिट्टी की प्रतिमा बनाई। इसी प्रतिमा को आचार्य की परमोच्च भावना रखकर एकलव्य ने धनुविद्या का अभ्यास किया।
दनकौर में बसा यह द्रोणाचार्य मन्दिर वही स्थान है जहाँ गुरू द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर एकलव्य ने धनुविद्या का अभ्यास किया था। अपने कठिन परिश्रम तथा लगातार अभ्यास से वह धनुविद्या में अत्यन्त पारंगत हो गये थे।

एकलव्य के श्रेष्ठ धनुर्धर बनने के पश्चात एक दिन पाण्डव और कौरव राजकमार गुरू द्रोणाचार्य के साथ शिकार के लिए वन भूमि पहुँचे राजकुमारों का कुत्ता एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा तथा जोर-जोर से भौकने लगा। कुत्ते के भौकने से एकलव्य का ध्यान भटकने लगा जिस कारण एकलव्य ने अपनी धनुर्धर विद्या के प्रयोग से कुत्ते के मुँह को बाणों से बन्द कर दिया।

एकलव्य ने इतनी कुशलता से बाण चलाए कि कुत्ते को बाणों से बिल्कुल भी कष्ठ नहीं हुआ। सभी राजकुमारों ने जब उस कुत्ते को देखा तो वह इतने कुशल धनुर्विद्या देखकर चकित हो गए और धनुर्विद्या की प्रशंसा करने लगे। राजकुमारों ने बनवासी वीर को वन भूमि में खोज करते हुए स्वंय अपनी आँखो से एकलव्य को बाण चलाते हुए देखा और एकलव्य के पास जाकर एकलव्य का परिचय पूछे जाने पर एकलव्य ने खुद को निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र एवं गुरू द्रोणाचार्य के शिष्य से सम्बोधित किया।

सभी राजकुमार एकलव्य का परिचय पाकर गुरू द्रोणाचार्य के पास पहुँच गये और गुरु द्रोणाचार्य को सभी घटना के बारे में अवगत कराया। राजकुमारों की सभी बातों को सुनकर स्वयं गुरू द्रोणाचार्य एकलव्य से मिलने के लिए वन के लिए निकल गए। एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य को अपने समीप आते देखा तो आगे बढ़कर उनकी अगवानी की ओर खुद को शिष्य के रूप में के उनके चरणों में समर्पित करके गुरू द्रोणाचार्य की विधि पूर्वक पूजा कर उनका सम्मान किया।

गुरू द्रोणाचार्य ने एकलव्य से बोला कि वीर यदि तुम सच में मुझे अपना गुरू मानते हो तो क्या मुझे गुरूदक्षिणा के रूप में मेरे द्वारा मांगा गया उपहार दे सकोगे। एकलव्य द्वारा गुरू द्रोणाचार्य की बात सुनकर खुशी-खुशी में बोले कि भगवान मैं आपको क्‍या दू? गुरूदेव में आपको बचन देता हूँ कि आप जो भी मांगोगे मैं आपको बिना किसी संकोच के भेट कर दूंगा। तब गुरू द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अपने दाहिने हाथ का अंगूठा गुरू दक्षिणा के रूप में मांग लिया।

यह कथा गुरू द्रोणाचार्य मन्दिर जनपद गौतमबुद्धनगर (उ. प्र. ) की तहसील सदर के अन्तर्गत दनकौर द्वारा प्रकाशित की गई है।
यह भी जानें

Katha Mahabharat KathaDwapar KathaGuru Dronacharya KathaEklavya KathaDankaur Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

सतयुग में सौ यज्ञ करने वाले एक पृथु नामक राजा हुए। उनके राज्यान्तर्गत दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। वेदों में निष्णात उनके चार पुत्र थे।

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा

संतोषी माता व्रत कथा | सातवें बेटे का परदेश जाना | परदेश मे नौकरी | पति की अनुपस्थिति में अत्याचार | संतोषी माता का व्रत | संतोषी माता व्रत विधि | माँ संतोषी का दर्शन | शुक्रवार व्रत में भूल | माँ संतोषी से माँगी माफी | शुक्रवार व्रत का उद्यापन

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा 2

बोलो बृहस्पतिदेव की जय। भगवान विष्णु की जय॥ बोलो बृहस्पति देव की जय॥

प्रेरक कथा: नारायण नाम की महिमा!

संत जन आशीर्वाद देकर चले गए। समय बीता उसके पुत्र हुआ। नाम रखा नारायण। अजामिल अपने नारायण पुत्र में बहुत आशक्त था। अजामिल ने अपना सम्पूर्ण हृदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था।

मंगलवार व्रत कथा

सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार व्रत रखना शुभ माना जाता है। पढ़े हनुमान जी से जुड़ी मंगलवार व्रत कथा...

श्री सत्यनारायण कथा - प्रथम अध्याय

एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु!...

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Durga Chalisa - Durga Chalisa
×
Bhakti Bharat APP