श्री विघ्ननिवारक सिद्धिविनायक स्तोत्रम् (Shri Siddhivinayak Stotram)


विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय
श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमंगलात्मन्
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥1॥
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्ति:
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुंकुमश्री: ।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥2॥

पाशांकुशाब्जपरशूंश्च दधच्चतुर्भि-
र्दोर्भिश्च शोणकुसुमस्त्रगुमांगजात: ।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥3॥

कार्येषु विघ्नचयभीतविरंचिमुख्यै:
सम्पूजित: सुरवरैरपि मोदकाद्यै: ।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥4॥

शीघ्रांचनस्खलनतुंगरवोर्ध्वकण्ठ-
स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसंघ: ।
शूर्पश्रुतिश्च पृथुवर्तुलतुंगतुन्दो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥5॥

यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराज: ।
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥6॥

सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीट:
कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्री:।
सर्वत्र मंगलकरस्मरणप्रतापो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥7॥

देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधनवरेण तमोsपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥8॥


॥इति श्रीमुद्गलपुराणे विघ्ननिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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