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श्रीमद्‍भगवद्‍गीता: अर्जुनविषादयोग - श्लोक 35 (Shrimad Bhagwat Geeta: Arjun Visada Yog: Shlok 35)


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एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ॥
भावार्थ: हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या है?
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