Sawan 2025

नाहर सिंह पांडे (Nahar Singh Pandey)


नाहर सिंह पांडे
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नाहर सिंह पांडे महाराजा गोगादेव के प्रधानमंत्री, सेनापति और राजपंडित थे। नाहर सिंह पांडे ने ही गोगामेड़ी मे 1 हजार वर्ष पूर्व में हिन्दू तिथि भादो शुक्ल नवमी विक्रम सम्वत 1082 तदनुसार माह अगस्त सन 1025 को भगवान गोगादेव के महाप्रयाण के पश्चात समाधि स्थल पर मंदिर प्रथम ज्योत प्रज्वलित की थीI यह स्थान उस समय प्रवाहमान सरस्वती नदी के किनारे पर था, जो अब भूमिगत विधमान है। श्री नाहरसिंह पांडे जी के वसंज आज भी भगतो की मनौती पूर्ण हेतु गोगाशीष जल का छींटा, कूंची द्वारा पूजन करवाते हैI
पिता - मल्लू दत्त
माता - शरबती देवी
अन्य प्रसिद्ध नाम - दादा नरसी पाण्डे, नरसिंह दत्त, नरसी पुरोहित, नरसी राणा, नन्दीदत्त

गोगाजी के दादा जी अमर जी द्वारा भठिंडा, पंजाब से लाये सारस्वत ब्राह्मण परिवार के पंडित मालाराम (मल्लू दत्त) नाहर सिंह के ही पूर्वज थे। नाहर सिंह जी ही गोगाजी के प्रिय मित्र थे गोगाजी जब कभी क्रुद्ध हो जाते तो कोई इनके निकट जाने की हिम्मत नहीं कर पाता था, तब नाहर सिंह जी ही उनके सम्मुख जाकर बात करने का साहस करते थे।

गोगाजी के महल में नंदीदत्त ही एक पुरुष थे उनके ऊपर कठिन कर्तव्य का भारी-भरकम भार था। नाहर सिंह पाण्डे जी ने ही गोगाजी के दोनों पुत्रो सज्जन और सामत को अभ्यास कराकर शस्त्र का अभ्यास करवाया था।

नाहर सिंह पाण्डे जी का दूत कार्य -
गोगाजी ने नाहर सिंह पाण्डे को जब राजदूत के कर्तव्य का निर्वहन करने हेतु काबुल भेजा तो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही मौखिक कथाओ के आधार पर विरचित पुरानी पुस्तको का यह गीत आला उदल की तर्ज़ पर भक्तो की जुबान पर सुना जा सकता है।
जहा कचहरी लगी हुई थी, नरसिंह पाण्डे पहुंच जाये ।
शोभा आ रही दरबार में, जिसका हॉल कहा न जाये ।
कुर्सी कुर्सी पर थे शहजादे, मूढे मूढे पर सरदार ।
कड़का कर रहे डोम वहाँ पर, उनकी रहे तारीफ सुनय ।
नरसिंह पाण्डे ने जा कर के सबको दीना शीश छुकाय ।
साथ हाथ के सिहासन पर बैठे सरवर और सुल्तान ।
चिठ्ठी दे दी जा नरसिंह ने सभी भूल गए ओसन ।
चिठ्ठी पढ़ी तभी उन्होंने भाई सुन लो कान लगाए ।
जैसी चिठ्ठी लिखकर आई सबको दू में सुनाय ।
सात पांच को नरसिंह मारे दीनी थी मारा मार मचाय ।
तीन सौ जवान मरे सरवर के सब दल तिड़ीबीड़ी हो जाए ।
जब ये देखा है नरसिंह ने अपना घोडा दिया बढ़ाए ।
काले बादल की लाली में जैसे कला कबूतर खाए ।
सर सर सर सर उड़ता जावे अम्बर पंख दिए फैलाय ।
तब्बू लग रहे जहा देवो के घोडा निचे उतरा है जाए ।
यह भी जानें

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