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🙏 पितृ पक्ष - Pitru Paksha

Pitru Paksha Date: Pratipada Shradh: Saturday, 30 September 2023
BASE TITLE (Most of the time its same as title.)

पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध या कानागत भी कहा जाता है, श्राद्ध पूर्णिमा के साथ शुरू होकर सोलह दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। हिंदू अपने पूर्वजों (अर्थात पितरों) को विशेष रूप से भोजन प्रसाद के माध्यम से सम्मान, धन्यवाद व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के समय, पूर्वजों को अपने रिश्तेदारों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। श्राद्ध कर्म की व्यख्या रामायण और महाभारत दोनों ही महाकाव्य में मिलती है।

संबंधित अन्य नामश्राद्ध पक्ष, कनागत, महालय पक्ष, सर्वपितृ अमावस्या, महालय अमावस्या, अपरा पक्ष, पितृ अमावस्या, पितर पक्ष
सुरुआत तिथिभाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा

Pitru Paksha in English

Pitru Paksha also known as Shraaddha or Kanagat | Pitru Paksha Start - 29 September 2023 | Pitru Paksha End - 14 October 2023

श्राद्ध तिथियाँ 2023 | पितृ पक्ष तिथियाँ कब-कब है?

29 सितंबर 2023, शुक्रवार: पूर्णिमा श्राद्ध / प्रतिपदा श्राद्ध / पड़वा श्राद्ध [पितृ पक्ष प्रारंभ]
30 सितंबर 2023, शनिवार: द्वितीया श्राद्ध
01 अक्टूबर 2023, रविवार: तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023, सोमवार: चतुर्थी श्राद्ध / महा भरणी
03 अक्टूबर 2023, मंगलवार: पंचमी श्राद्ध / कुवांरा पंचमी
04 अक्टूबर 2023, बुधवार: षष्ठी श्राद्ध
05 अक्टूबर 2023, गुरुवार: सप्तमी श्राद्ध
06 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: अष्टमी श्राद्ध
07 अक्टूबर 2023, शनिवार: नवमी श्राद्ध/ मातृ नवमी / अविधवा श्राद्ध
08 अक्टूबर 2023, रविवार: दशमी श्राद्ध
09 अक्टूबर 2023, सोमवार: एकादशी श्राद्ध
10 अक्टूबर 2023, मंगलवार: मघा श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023, बुधवार: द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023, गुरुवार: त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: चतुर्दशी / चौदस श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023, शनिवार: सर्व पितृ अमावस्या / महालया [पितृ पक्ष समापन]

पितृ पक्ष का महाभारत से एक प्रसंग

श्राद्ध का एक प्रसंग महाभारत महाकाव्य से इस प्रकार है, कौरव-पांडवों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। उन्हें खाने मे सोना, चांदी और गहने भोजन के जगह परोसे गये। इस पर, उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से इसका कारण पूछा।

इस पर, इंद्र ने कर्ण को बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने सोने, चांदी और हीरों का ही दान किया, परंतु कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर कोई भोजन नहीं दान किया। कर्ण ने इसके उत्तर में कहा कि, उन्हें अपने पूर्वजों के बारे मैं कोई ज्ञान नही था, अतः वह ऐसा करने में असमर्थ रहे।

तब, इंद्र ने कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के सलाह दी, जहां उन्होंने इन्हीं सोलह दिनों के दौरान भोजन दान किया तथा अपने पूर्वजों का तर्पण किया। और इस प्रकार दानवीर कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हुए।

श्राद्ध तिथियाँ की महत्ता

पूर्णिमा
प्रोष्ठपदी/पूर्णिमा का श्राद्ध

बाकी सभी श्राद्ध तिथि के अनुसार ही हैं
प्रतिपदा श्राद्ध, द्वितीया श्राद्ध, तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध, पंचमी श्राद्ध, षष्ठी श्राद्ध, सप्तमी श्राद्ध, अष्टमी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध, दशमी श्राद्ध, एकादशी श्राद्ध, त्रयोदशी श्राद्ध

द्वादशी
सन्यासियों का श्राद्ध

चतुर्दशी
चतुर्दशी तिथि के दिन शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतों का श्राद्ध होता है चाहे उनकी मृत्यु किसी अन्य तिथि में हुई हो।

अमावस
अमावस का श्राद्ध, अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, सर्वपितृ श्राद्ध।

कनागत 2023

पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान को ही श्राद्ध कहते है। मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर अपने पुत्र - पौत्रों के साथ रहिने आते हैं, अतः इसे कनागत भी कहा जाता है।

प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिये पिंड दान या श्राद्ध कर्म किये जा सकते हैं, परंतु पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है।

पितृ पक्ष में पूर्वज़ों का श्राद्ध कैसे करें?
जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि अगर याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उसी तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है। समय से पहले यानि कि किसी दुर्घटना अथवा आत्मदाह आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।

श्राद्ध तीन पीढि़यों तक करने का विधान बताया गया है। यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। तीन पूर्वज में पिता को वसु के समान, रुद्र देवता को दादा के समान तथा आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।

श्राद्ध अनुष्ठानों के लिए भारत के पवित्र स्थान

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भारत में कुछ महत्वपूर्ण जगहें हैं जो निर्वासित आत्माओं की शांति और खुश रहने के लिए श्रद्धा अनुष्ठान करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
प्रयगा (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश
गया, बिहार
केदारनाथ, उत्तराखंड
बद्रीनाथ, उत्तराखंड
रामेश्वरम, तमिलनाडु
नासिक, महाराष्ट्रा
कपाल मोचन सरोवर, यमुना नगर, हरियाणा

सर्वपितृ अमावस्या

14 October 2023
पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जाना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि की सही तारीख / दिन नहीं पता होता, वे लोग इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित करके याद करते हैं।

भरणी श्राद्ध

2 October 2023
भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है और इसे 'महाभरणी श्राद्ध' के नाम से भी जाना जाता है। भरणी श्राद्ध में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। जो लोग अपने पूरे जीवन में कोई तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद भरणी श्राद्ध किया जाता है ताकि उन्हें मातृगया, पितृ गया, पुष्कर तीर्थ और बद्री केदार आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले।

भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के भरणी नक्षत्र में किया जाता है। किसी की मृत्यु के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता क्योंकि प्रथम वार्षिक वर्ष श्राद्ध करने तक मृत व्यक्ति की आत्मा जीवित रहती है। लेकिन प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

भरणी श्राद्ध के दौरान अनुष्ठान:
❀ पवित्र ग्रंथों के अनुसार, भरणी श्राद्ध को गया, काशी, प्रयाग, रामेश्वरम आदि पवित्र स्थानों पर करने का सुझाव दिया गया है।
❀ भरणी श्राद्ध करने का शुभ समय कुतप मुहूर्त और रोहिणा आदि मुहूर्त है, उसके बाद दोपहर का त्योहार समाप्त होने तक। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।
❀ भरणी श्राद्ध के दिन कौओं को भी भोजन खिलाना चाहिए, क्योंकि उन्हें भगवान यमराज का दूत माना जाता है। कौवे के अलावा कुत्ते और गाय को भी भोजन कराया जाता है।
❀ ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध अनुष्ठान को धार्मिक और पूरी श्रद्धा के साथ करने से मुक्त आत्मा को शांति मिलती है और वे बदले में अपने वंशजों को शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करते हैं।

भरणी श्राद्ध का महत्व:
कहा गया है कि भरणी श्राद्ध के गुण गया श्राद्ध के समान होते हैं इसलिए इसकी बिल्कुल भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह दिन महालया अमावस्या के बाद पितृ श्राद्ध अनुष्ठान के दौरान सबसे अधिक मनाया जाता है।

संबंधित जानकारियाँ

आगे के त्यौहार(2023)
Pratipada Shradh: 30 September 2023Dwitiya Shradh: 1 October 2023Tritiya Shradh: 2 October 2023Chaturthi Shradh (Maha Bharani): 3 October 2023Panchami Shradh: 4 October 2023Shashthi Shradh: 5 October 2023Saptami Shradh: 6 October 2023Ashtami Shradh: 7 October 2023Navami Shradh: 8 October 2023Dashami Shradh: 9 October 2023Ekadashi Shradh: 10 October 2023Dwadashi Shradh (Magha Shradh): 11 October 2023Triodashi Shradh: 12 October 2023Chaturdashi Shradh: 13 October 2023Sarvapitri Amavasy: 14 October 2023
भविष्य के त्यौहार
Shraddha Purnima: 17 September 2024
आवृत्ति
वार्षिक
समय
16 दिन
सुरुआत तिथि
भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा
समाप्ति तिथि
आश्विन कृष्ण अमावस्या
महीना
सितंबर / अक्टूबर
पिछले त्यौहार
Shraddha Purnima: 29 September 2023, Sarvapitri Amavasy: 25 September 2022, Shraddha Purnima: 10 September 2022
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BASE TITLE (Most of the time its same as title.) 2023 तिथियाँ

FestivalDate
Pratipada Shradh30 September 2023
Dwitiya Shradh1 October 2023
Tritiya Shradh2 October 2023
Chaturthi Shradh (Maha Bharani)3 October 2023
Panchami Shradh4 October 2023
Shashthi Shradh5 October 2023
Saptami Shradh6 October 2023
Ashtami Shradh7 October 2023
Navami Shradh8 October 2023
Dashami Shradh9 October 2023
Ekadashi Shradh10 October 2023
Dwadashi Shradh (Magha Shradh)11 October 2023
Triodashi Shradh12 October 2023
Chaturdashi Shradh13 October 2023
Sarvapitri Amavasy14 October 2023
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