Shri Krishna Bhajan

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 59 (Shri Ramcharitmanas Sundar Kand Pad 59)


Add To Favorites Change Font Size
चौपाई:
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे ।
छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ॥
गगन समीर अनल जल धरनी ।
इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ॥1॥
तव प्रेरित मायाँ उपजाए ।
सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए ॥
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई ।
सो तेहि भाँति रहे सुख लहई ॥2॥

प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही ।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही ॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी ।
सकल ताड़ना के अधिकारी ॥3॥

प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई ।
उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई ॥
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई ।
करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई ॥4॥

दोहा:
सुनत बिनीत बचन अति
कह कृपाल मुसुकाइ ।
जेहि बिधि उतरै कपि कटकु
तात सो कहहु उपाइ ॥59॥
यह भी जानें
हिन्दी भावार्थ

समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़कर कहा- हे नाथ! मेरे सब अवगुण (दोष) क्षमा कीजिए। हे नाथ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी- इन सबकी करनी स्वभाव से ही जड़ है॥1॥

आपकी प्रेरणा से माया ने इन्हें सृष्टि के लिए उत्पन्न किया है, सब ग्रंथों ने यही गाया है। जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा है, वह उसी प्रकार से रहने में सुख पाता है॥2॥

प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥3॥

प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है (मेरी मर्यादा नहीं रहेगी)। तथापि प्रभु की आज्ञा अपेल है (अर्थात्‌ आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता) ऐसा वेद गाते हैं। अब आपको जो अच्छा लगे, मैं तुरंत वही करूँ॥4॥

समुद्र के अत्यंत विनीत वचन सुनकर कृपालु श्री रामजी ने मुस्कुराकर कहा- हे तात! जिस प्रकार वानरों की सेना पार उतर जाए, वह उपाय बताओ॥59॥

Granth Ramcharitmanas GranthSundar Kand Granth

अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस ग्रंथ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

ग्रंथ ›

विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 41

बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई ।..

श्री रामचरितमानस: सुन्दर काण्ड: पद 44

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।..

Durga Chalisa - Durga Chalisa
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP