Shri Ram Bhajan

जीवन का, जीवन बीमा - प्रेरक कहानी (Jeevan Ka Jeevan Bima)


Add To Favorites Change Font Size
दो मित्र थे, बड़े परिश्रमी और मेहनती। अपने परिश्रम से दोनों एक दिन बड़े सेठ बन गए। दोनों ने बड़ा व्यवसाय खड़ा कर लिया। पहले सेठ ने अपनी सारी संपत्ति का बीमा करवा लिया। उसने अपने मित्र को बार बार यही परामर्श दिया की वह भी अपनी सम्पत्ति का बीमा करवा ले। परन्तु दूसरे मित्र ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। दुर्भाग्य से एक दिन शहर में आग लग गई। दोनों की सारी संपत्ति जल कर राख हो गई। पहले सेठ ने बीमा करवा रखा था इसलिये उसे सारी संपत्ति वापिस मिल गई जबकि दूसरा मित्र निर्धन बन गया। मगर हाथ पछताने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं बचा था।
मनुष्य का यह जन्म भी सेठ की संपत्ति के समान है। हम सभी को मालूम है की एक दिन इस शरीर को भस्म होना है मगर हम हैं की जीवन के इस अटल सत्य को जानकर भी अनसुना कर देते हैं। हम इसका कभी बीमा नहीं करवाते। न सत्कर्म करते है, न अभ्यास और वैराग्य द्वारा मोक्ष मार्ग को सिद्ध करते हैं, न योग मार्ग के पथिक बनते है, न ईश्वर का साक्षात्कार करते है। इसके विपरीत भोग, दुराचार, पाप, राग-द्वेष, ईर्ष्या, अभिमान, अहंकार, असत्य आदि के चक्कर में अपना बीमा ही करवाना भूल जाते हैं।

वेद में अनेक मन्त्रों के माध्यम से जन्म-मरण और मुक्ति की पवित्र शिक्षा को कहा गया हैं-
शरीररूप बंधन में आकर जीवात्मा जहाँ तहाँ भटकता है- वेद
शरीर नश्वर है इसके रहते हुए जो श्रेष्ठ कर्म किया जा सके करले अपने को संभाल के परमात्मा का स्मरण कर-वेद
जीवात्मा वासनावश ऊँची नीची योनियों में शरीर धारण करता है, शरीर अस्थिर है-वेद
मैं नश्वर कच्चे घर(शरीर) में फिर न आऊं- वेद
हमें नश्वर शरीर की प्राप्ति न हो, सर्वथा अखंड सुखसम्पत्ति मुक्ति को प्राप्त हो।
यह भी जानें
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

ऋषि कक्षीवान सत्य कथा

एक बार वे ऋषि प्रियमेध से मिलने गए जो उनके सामान ही विद्वान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। दोनों सहपाठी भी थे और जब भी वे दोनों मिलते तो दोनों के बीच एक लम्बा शास्त्रात होता था

नमस्ते और नमस्कार मे क्या अंतर है?

नमस्कार और नमस्ते, एक जैसे अर्थ वाले दो शब्द। लेकिन अगर इनकी गहराई में जाया जाए तो दोनों में अंतर है। तिवारी जी एक कसबे के 12वीं तक के स्कूल में अध्यापक थे।

अपना मान भले टल जाए, भक्त का मान ना टलने देना - प्रेरक कहानी

भक्त के अश्रु से प्रभु के सम्पूर्ण मुखारविंद का मानो अभिषेक हो गया। अद्भुत दशा हुई होगी... ज़रा सोचो! रंगनाथ जी भक्त की इसी दशा का तो आनंद ले रहे थे।

जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे? - प्रेरक कहानी

एक मछलीमार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा...

एक दिन का पुण्य ही क्यूँ? - प्रेरक कहानी

तुम्हारे बाप के नौकर बैठे हैं क्या हम यहां, पहले पैसे, अब पानी, थोड़ी देर में रोटी मांगेगा, चल भाग यहाँ से।

महाभारत में कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा?

महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा: मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?

जो आपका नहीं, उसके लिए दुख क्यों? - प्रेरक कहानी

एक आदमी सागर के किनारे टहल रहा था। एकाएक उसकी नजर चांदी की एक छड़ी पर पड़ी, जो बहती-बहती किनारे आ लगी थी। वह खुश हुआ और झटपट छड़ी उठा ली। अब वह छड़ी लेकर टहलने लगा।...

Aditya Hridaya Stotra - Aditya Hridaya Stotra
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP