Shri Ram Bhajan

विद्वत्ता पर कभी घमंड न करें - प्रेरक कहानी (Vidvatta Par Kabhi Ghamand Na Karen)


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महाकवि कालिदास रास्ते में थे। प्यास लगी। वहां एक पनिहारिन पानी भर रही थी।
कालिदास बोले: माते! पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।
पनिहारिन बोली: बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो। मैं पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा: मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
पनिहारिन बोली: तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

तर्क से पराजित कालीदास अवाक् रह गए।

कालिदास बोले: मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
पनिहारिन ने कहा: नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो?

कालिदास मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्ला उठे!

कालिदास बोले: मैं हठी हूँ।
पनिहारिन बोली: फिर असत्य। हठी तो दो ही हैं। पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें कौन हैं आप ?

कालिदास अपमानित और पराजित हो चुके थे

कालिदास ने कहा: फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ।
पनिहारिन ने कहा: नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा पनिहारिन के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे!

वृद्धा ने कहा: उठो वत्स!

आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए

माँ ने कहा: शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार से। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

विद्वत्ता पर कभी घमंड न करें। घमंड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। अन्न के कण को और आनंद के क्षण
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