एक राजा को पता चला कि गुरु नानक उसके गाँव आने वाले हैं। राजा उनके स्वागत के लिए गाँव के बाहर खड़ा हो गया और उनको भेंट देने के लिए कीमती जेवर और अन्य सामान साथ में ले गया। जब गुरु नानक पहुँचे तो राजा ने गुरु नानक जी को वो सारा सामान भेंट किया ।
तब गुरु नानक जी ने कहा- मुझे वो दो जो तेरा है ?
राजा ने कहा- ये सारा सामान मेरा है।
गुरु जी ने कहा- ये तो प्रजा का है।
राजा ने कहा- सिहासन की गद्दी ले लो।
गुरु जी ने कहा- ये तो प्रजा की बनाई हुई है।
राजा ने कहा- मेरा परिवार आपके सामने भेंट है।
गुरु नानक जी ने कहा- ये भी कर्म के अनुसार आपको मिला है।
अंत में राजा ने कहा- हे सतगुरू जी आप ही बताये मैं ऐसा क्या भेंट करूँ जो मेरा है ?
तब गुरु जी ने बड़ी निम्रता से कहा- मुझे तेरी बनाई हुई मैं और मेरी दे दो ।
तब राजा ने मुकुट निकाल कर रख दिया और कहने लगा मैं और मेरी इसी से आती है।
तब गुरु जी ने वापस मुकुट राजा को पहनाया और कहा कि, अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए जिस जगह भी रहो, मालिक की सेवा उसकी समझकर करना और धन भी उसी का है, और मेरा इस संसार में कुछ नही है ।
तन-मन-धन सब है तेरा, बिन तेरे क्या है मेरा!
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