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सचमुच सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही है (Sachmuch Sab Kuch Tumhare Hath Main Hi Hai)


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एक आदमी रेगिस्तान से गुजरते वक़्त बुदबुदा रहा था: कितनी बेकार जगह है ये, बिलकुल भी हरियाली नहीं है, और हो भी कैसे सकती है, यहाँ तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है।
तपती रेत में वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। अंत में वो आसमान की तरफ देख झल्लाते हुए बोला: क्या भगवान आप यहाँ पानी क्यों नहीं देते? अगर यहाँ पानी होता तो कोई भी यहाँ पेड़-पौधे उगा सकता था, और तब ये जगह भी कितनी खूबसूरत बन जाती।

ऐसा बोल कर वह आसमान की तरफ ही देखता रहा, मानो वो भगवान के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो।

तभी एक चमत्कार होता है, नजर झुकाते ही उसे सामने एक कुआँ नजर आता है।

वह उस इलाके में बरसों से आ-जा रहा था पर आज तक उसे वहां कोई कुआँ नहीं दिखा था, वह आश्चर्य में पड़ गया और दौड़ कर कुंवे के पास गया, कुंवा लाबा-लब पानी से भरा था।

उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा और पानी के लिए धन्यवाद करने की बजाये बोला: पानी तो ठीक है लेकिन इसे निकालने के लिए कोई उपाय भी तो होना चाहिए।

उसका ऐसा कहना था कि उसे कुएँ के बगल में पड़ी रस्सी और बाल्टी दिख गयी। एक बार फिर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।

वह कुछ घबराहट के साथ आसमान की ओर देख कर बोला: लेकिन मैं ये पानी यहाँ से कैसे ले जाऊँगा?

तभी उसे महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से छू रहा है, पलट कर देखा तो एक ऊंट उसके पीछे खड़ा था।

अब वह आदमी अब एकदम घबड़ा जाता है, उसे लगता है कि कहीं वो रेगिस्तान में हरियाली लाने के काम में ना फंस जाए और इस बार वो आसमान की तरफ देखे बिना तेज क़दमों से आगे बढ़ने लगता है।

अभी उसने दो-चार कदम ही बढ़ाया था कि उड़ता हुआ पेपर का एक टुकड़ा उससे आकर चिपक जाता है।

उस टुकड़े पर लिखा होता है: मैंने तुम्हे पानी दी, बाल्टी और रस्सी दी, पानी लेजाने का साधन भी दिया, अब तुम्हारे पास वो हर एक वास्तु है जो तुम्हे रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए चाहिए थी, अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही है

आदमी एक क्षण के लिए ठहरा, पर अगले ही पल वह आगे बढ़ गया और रेगिस्तान कभी भी हरा-भरा नहीं बन पाया।

कई बार हम चीजों के अपने मन मुताबिक न होने पर दूसरों को दोष देते हैं। कभी हम सरकार को दोषी ठहराते हैं, कभी अपने बुजुर्गों को, कभी कम्पनी को तो कभी भगवान को। पर इस दोषारोपण के चक्कर में हम इस आवश्यक चीज को अनदेखा कर देते हैं कि एक इंसान होने के नाते हममें वो शक्ति है कि हम अपने सभी सपनो को खुद साकार कर सकते हैं।

शुरुआत में भले लगे कि ऐसा कैसे संभव है पर जिस तरह इस कहानी में उस इंसान को रेगिस्तान हरा-भरा बनाने के सारे साधन मिल जाते हैं उसी तरह हमें भी प्रयत्न करने पर अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ज़रूरी सारे उपाय मिल सकते हैं।

पर समस्या ये है कि ज्यादातर लोग इन उपायों के होने पर भी उस आदमी की तरह बस शिकायतें करना जानते हैं। अपनी मेहनत से अपनी दुनिया बदलना नहीं। तो चलिए, आज इस कहानी से सीख लेते हुए हम शिकायत करना छोडें और जिम्मेदारी लेकर अपनी दुनिया बदलना शुरू करें क्योंकि सचमुच सबकुछ तुम्हारे हाथ में है
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