Vat Savitri Vrat Date: Saturday, 16 May 2026
हिंदू विवाहित महिलाएं जिनके पति जीवित हैं, अपने सास-ससुर एवं पति की लम्बी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत को मानतीं हैं। उत्तर भारत जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा राज्य मे वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या को मनाया जाता है।
जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीयों की तुलना में 15 दिन बाद अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को समान रीति से वट सावित्री व्रत वट पूर्णिमा के नाम से मानतीं हैं।
सावित्री व्रत कथा के अनुसार वट वृक्ष के नीचे ही उनके सास-ससुर को दिव्य ज्योति, छिना हुआ राज्य तथा वहीं उसके मृत पति के शरीर में प्राण वापस आए थे। पुराणों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। अतः वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण व दीर्घायु का पूरक माना गया है।
सावित्री को भारतीय संस्कृति में आदर्श नारीत्व व सौभाय पतिव्रता के लिए ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं, जिसे रक्षा कहा जाता है। साथ ही पूजन के बाद अपने पति को रोली और अक्षत लगाकर चरणस्पर्श कर प्रसाद मिष्ठान वितरित करतीं हैं। अंततः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, अपने सास-ससुर का उचित पूजन अवश्य करें। सावित्री व्रत ओडिशा का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, ओडिशा में विवाहित महिलाएँ दिन में व्रत रखती हैं और सावित्री और सत्यभान की कहानी सुनती हैं। ओडिया में सावित्री व्रत कथा
संबंधित अन्य नाम | वट सावित्री अमावस्या, बड़ अमावस, बड़ पूजन अमावस्या, वट अमावस्या, सावित्री अमावस्या |
शुरुआत तिथि | ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या |
कारण | पति की लंबी उम्र हेतु। |
उत्सव विधि | व्रत, दान, पूजा। |
Married Hindu women whose husbands are alive celebrate Vat Savitri Vrat to pray for their Parents-in-Law and husband for a long life.
सावित्री व्रत कब है? - Vat Savitri Vrat Kab Hai?
वट सावित्री अमावस्या सोमवार, 26 मई 2025 को
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - सोमवार, 26 मई 2025 को 12:11 PM बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - मंगलवार, 27 मई 2025 को 8:31 AM बजे
जानें वट सावित्री व्रत कथा!
भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
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सावित्री व्रत कैसे करें?
◉ सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठ जाती हैं और नहाने के बाद नए कपड़े और चूड़ियां समेत आभूषण पहनती हैं। सभी विवाहित महिलाएं माथे पर लाल सिंदूर लगाती हैं।
◉ सावित्री को प्रतीकात्मक रूप से पीसने वाले पत्थर द्वारा दर्शाया जाता है, जिसे स्थानीय रूप से सिल पुआ के नाम से जाना जाता है। पीसने वाले पत्थर को अच्छी तरह से साफ करके पूजा की जाती है। भोग या सावित्री को चढ़ाने में चावल, गीली दालें और स्थानीय रूप से उपलब्ध फल जैसे आम, कटहल, केला आदि शामिल हैं।
◉ उपवास सूर्योदय से शुरू होता है और सूर्यास्त के बाद शाम की प्रार्थना के साथ समाप्त होता है। महिलाएं माता-पिता और अन्य बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं।
◉ सावित्री को चढ़ाए गए प्रसाद का सेवन करने से व्रत तोड़ा जाता है।
संबंधित जानकारियाँ
शुरुआत तिथि
ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या
समाप्ति तिथि
ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या
कारण
पति की लंबी उम्र हेतु।
उत्सव विधि
व्रत, दान, पूजा।
महत्वपूर्ण जगह
उत्तर भारत के घरों मे।
पिछले त्यौहार
26 May 2025, North India : 6 June 2024, North India : 19 May 2023
Updated: May 26, 2025 13:24 PM
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