कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 11 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 11)


एक बार सागर पुत्र जलन्धर अपनी पत्नी वृन्दा सहित असुरों से सम्मानित हुआ सभा में बैठा था तभी गुरु शुक्राचार्य का वहाँ आगमन हुआ। उनके तेज से सभी दिशाएँ प्रकाशित हो गई। गुरु शुक्राचार्य को आता देखकर सागर पुत्र जलन्धर ने असुरों सहित उठकर बड़े आदर से उन्हें प्रणाम किया। गुरु शुक्राचार्य ने उन सबको आशीर्वाद दिया। फिर जलन्धर ने उन्हें एक दिव्य आसन पर बैठाकर स्वयं भी आसन ग्रहण किया फिर सागर पुत्र जलन्धर ने उनसे विनम्रतापूर्वक पूछा - हे गुरुजी! आप हमें यह बताने की कृपा करें कि राहु का सिर किसने काटा था?इस पर दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने विरोचन पुत्र हिरण्यकश्यपु और उसके धर्मात्मा पौत्र का परिचय देकर देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन की कथा संक्षेप में सुनाते हुए बताया कि जब समुद्र से अमृत निकला तो उस समय देवरूप बनाकर राहु भी पीने बैठ गया। इस पर इन्द्र के पक्षपाती भगवान विष्णु ने राहु का सिर काट डाला।

अपने गुरु के मुख से इस प्रकार के वचन सुनकर जलन्धर के क्रोध की सीमा न रही, उसके नेत्र लाल हो गये फिर उसने अपने धस्मर नामक दूत को बुलाया और उसे शुक्राचार्य द्वारा सुनाया गया वृत्तान्त सुनाया। तत्पशचत उसने धस्मर को आज्ञा दी कि तुम शीघ्र ही इन्द्रपुरी में जाकर इन्द्र को मेरी शरण में लाओ।

धस्मर जलन्धर का बहुत आज्ञाकारी एवं निपुण दूत था। वह जल्द ही इन्द्र की सुधर्मा नामक सभा में जा पहुंचा और जलन्धर के शब्दों में इन्द्र से बोला - हे देवताधाम! तुमने समुद्र का मन्थन क्यों किया और मेरे पिता के समस्त रत्नों को क्यों ले लिया? ऎसा कर के तुमने अच्छा नहीं किया। यदि तू अपना भला चाहता है तो उन सब रत्नों एवं देवताओं सहित मेरी शरण में आ जा अन्यथा मैं तेरे राज्य का ध्वंस कर दूंगा, इसमें कुछ भी मिथ्या नहीं है।

इन्द्र बहुत विस्मित हुआ और कहने लगा - पहले मेरे भय से सागर ने सब पर्वतों को अपनी कुक्षि में क्यों स्थान दिया और उसने मेरे शत्रु दैत्यों की क्यों रक्षा की? इसी कारण मैंने उनके सब रत्न हरण किये हैं। मेरा द्रोही सुखी नहीं रह सकता, इसमें सन्देह नहीं।

इन्द्र की ऎसी बात सुनकर वह दूत शीघ्र ही जलन्धर के पास आया और सब बातें कह सुनाई। उसे सुनते ही वह दैत्य मारे क्रोध के अपने ओष्ठ फड़फड़ाने लगा और देवताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए उसने उद्योग आरम्भ किया फिर तो सब दिशाओं, पाताल से करोड़ो-करोड़ो दैत्य उसके पास आने लगे।

शुम्भ-निशुम्भ आदि करोड़ो सेनापतियों के साथ जलन्धर इन्द्र से युद्ध करने लगा। शीघ्र ही इन्द्र के नन्दन वन में उसने अपनी सेना उतार दी। वीरों की शंखध्वनि और गर्जना से इन्द्रपुरी गूंज उठी। अमरावती छोड़ देवता उससे युद्ध करने चले। भयानक मारकाट हुई। असुरों के गुरु आचार्य शुक्र अपनी मृत संजीवनी विद्या से और देवगुरु बृहस्पति द्रोणागिरि से औषधि लाकर जिलाते रहे।

इस पर जलन्धर ने क्रुद्ध होकर कहा कि मेरे हाथ से मरे हुए देवता जी कैसे जाते हैं? जिलाने वाली विद्या तो आपके पास है।

इस पर शुक्राचार्य ने देवगुरु द्वारा द्रोणाचार्य से औषधि लाकर देवताओं को जिलाने की बात कह दी। यह सुनकर जलन्धर और भी कुपित हो गया फिर शुक्राचार्य जी ने कहा - यदि शक्ति हो तो द्रोणागिरि को उखाड़कर समुद्र में फेंक दो तब मेरे कथन की सत्यता प्रमाणित हो जाएगी। इस पर जलन्धर कुपित होकर जल्द ही द्रोनागिरि पर्वत के पास पहुंचा और अपनी भुजाओं से पकड़कर द्रोणागिरि पर्वत को उखाड़कर समुद्र में फेंक दिया। यह तो भगवान शंकर का तेज था इसमें जलन्धर की कोई विचित्रता नहीं थी।

तत्पश्चात यह सागर पुत्र युद्धभूमि में आकर बड़े तीव्र गति से देवताओं का संहार करने लगा। जब द्रोनाचार्य जी औषधि लेने गये तो द्रोणाचल को उखड़ा हुआ शून्य पाया। वह भयभीत हो देवताओं के पास आये और कहा कि युद्ध बन्द कर दो। जलन्धर को अब नहीं जीत सकोगे।

पहले इन्द्र ने शिवजी का अपमान किया था, यह सुन सेवता युद्ध में जय की आशा त्याग कर इधर-उधर भाग गये। सिन्धु-सुत निर्भय हो अमरावती में घुस गया, इन्द्र आदि सब देवताओं ने गुफाओं में शरण ली।
Katha Kartik Mas KathaKartik KathaKartik Month KathaKrishna KathaShri Hari KathaShri Vishnu KathaISKCON KathaJalandhar KathaDronagiri Katha
अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति पौराणिक कथा

दारूका नाम की एक प्रसिद्ध राक्षसी थी, जो पार्वती जी से वरदान प्राप्त कर अहंकार में चूर रहती थी। उसका पति दरुका महान् बलशाली राक्षस था।...

नर्मदेश्वर शिवलिंग बने की पौराणिक कथा

नर्मदेश्वर शिवलिंग कैसे बनते हैं और कहाँ मिलते हैं, इस सवाल के जबाब के लिए यह पौराणिक कथा बिल्कुल उपयुक्त है। नर्मदा का प्रत्येक पत्थर शिवलिंग..

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक बार पार्वती जी ने गणेशजी से पूछा कि वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की जो संकटा नामक चतुर्थी कही गई है, उस दिन कौन से गणेश का किस विधि से पूजन करना चाहिए एवं उस दिन भोजन में क्या ग्रहण करना चाहिए?

रोहिणी शकट भेदन, दशरथ रचित शनि स्तोत्र कथा

प्राचीन काल में दशरथ नामक प्रसिद्ध चक्रवती राजा हुए थे। राजा के कार्य से राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी...

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा

संतोषी माता व्रत कथा | सातवें बेटे का परदेश जाना | परदेश मे नौकरी | पति की अनुपस्थिति में अत्याचार | संतोषी माता का व्रत | संतोषी माता व्रत विधि | माँ संतोषी का दर्शन | शुक्रवार व्रत में भूल | माँ संतोषी से माँगी माफी | शुक्रवार व्रत का उद्यापन