आज की कहानी के नायक अंगूठा छाप तन्विक पढ़े लिखे तो नहीं थे पर "हुनरमंद" अवश्य थे। वह पेशे से एक माली हैं और बंजर धरा को हरीभरी करने की कला में माहिर हैं।
तन्विक घर-घर जा कर लोगों के बगीचे संभालते थे। गुज़र बसर लायक पैसा बच जाया करता था। मेहनती खूब थे, 25 वर्ष की आयु में दिन भर साइकिल चला कर घर घर जाते और अपना काम पूरी लगन से करते थे। एक दिन तन्विक पर नयासर निवासी निनाद की नज़र पड़ी। निनाद ने तन्विक से कहा कि उनके घर में एक बगीचा है जिसकी देख-रेख के लिये उन्हें एक माली की आवश्यकता है। तन्विक मान गये। निनाद ने पूछा - बगीचे के रखरखाव के कितने पैसे लेंगे तो तन्विक ने कहा के जो भी निनाद सहर्ष देंगे वह स्वीकार लेंगे।
असल में तन्विक के मस्तिष्क में एक अलग ही प्लान था। निनाद का घर नयासर के पॉश इलाकों में था। वहां अधिकतर धनाढ्य लोगों की कोठियां थी।
अगली सुबह तन्विक साइकिल पर आये। निनाद से कहा "राम राम सेठ"। औज़ार निकाले और काम मे जुट गये। 15 दिन में तन्विक ने बगीचे का कायाकल्प ही कर दी। बगिया को ऐसा सजाया कि स्वयं निनाद भी देख कर हैरान रह गये।
फिर अपने प्लान के मुताबिक उन्होंने आस-पास के लोगों से सम्पर्क साधना शुरू किया और उन्हें निनाद के बगीचे में किया हुआ रूपांतरण दिखलाया।
आस पास के लोगों को भी तन्विक का काम भा गया और एक एक कर उन्होंने आस पड़ोस के सभी बगीचों की देख रेख का काम पकड़ लिया। सुबह 6 बजे से साँझ के 6 बजे तक तन्विक जीतोड़ मेहनत करते रहे और एक एक बगीचे को नया रूप देते रहे। काम भी बढ़ा और आमदनी में भी इजाफा हुआ।
तन्विक ने अब एक मोटर साइकिल खरीद ली। दो साल की अवधि में तन्विक ने 20 घरों के बगीचों की देख रेख का काम संभाल लिया और 4 लड़कों को नौकरी पर रख लिया।
काम के प्रति लग्न :
इसी बीच झुंझुनूं के ही एक मशहूर बिल्डर नवनीत की नज़र तन्विक के काम पर पड़ी तो उसने तन्विक को एक पूरे बिल्डिंग कॉम्प्लेक्स में पेड़ पौधे लगाने का ठेका(कॉन्ट्रैक्ट) दे दिया। तन्विक ने फिर सब दिन रात एक दी। इस कॉन्ट्रैक्ट ने तन्विक की किस्मत पलट दी। काम 10 गुणा बढ़ा और आमदनी भी कई गुणा बढ़ गयी।
एक दिन निनाद ने तन्विक को फोन मिलाया के वह पुनः अपने बगीचे में कुछ काम करवाना चाहते हैं। निनाद को तन्विक से मिले अब दो वर्ष बीत चुके थे। तन्विक ने कहा कि वह कुछ देर में उनके बंगले पर पहुंच जायेंगे। कुछ देर बाद निनाद वेंगुलेकर के बंगले के आगे एक चमचमाती होंडा सिविक गाड़ी आ कर रुकी। निनाद घर के बाहर ही खड़े थे।
गाड़ी में से एक शख्स उतरा और बोला "राम राम सेठ"। निनाद को लगा के यह कौन सेठ हैं जो चमचमाती गाड़ी से उतर कर मुझे सेठ बोल रहा है। फिर सामने खड़े शख्स ने कहा "पहचाना सेठ। मैं तन्विक"
क्या वही तन्विक जो आज से दो साल पहले साइकिल पर निनाद के घर आता था आज हौंडा सिविक में विराजमान था। हक्के-बक्के निनाद को तन्विक ने हाथ जोड़ कर धन्यवाद देते हुये कहा - आपके पास से ही शुरुआत की थी।
निनाद अब कम से कम यह उम्मीद तो नहीं कर रहे थे के हौंडा सिविक जैसी आलीशान गाड़ी से उतरा कोई शख्स उनके बगीचे की मिट्टी खोदेगा।
परंतु फिर कुछ ऐसा देखने को मिला जिसकी उम्मीद निनाद को भी नहीं थी। तन्विक ने औज़ार निकाले और काम पर जुट गये। उनके साथ उनके सहायक भी थे परंतु उन सब मे से अब भी सबसे अधिक मेहनत करते तन्विक ही दिखे। इसी दरमियां निनाद ने तन्विक की कुछ तसवीरें खींच ली।
निनाद के लिये यह सारा घटनाक्रम अविश्वसनीय था। एक साधारण माली जो एक साईकिल से हौंडा सिविक तक का सफर तय कर चुका था और आज भी अपने काम के प्रति उतना ही निष्ठावान और समर्पित था। आज भी उसके हृदय में अपने काम के प्रति उतना ही सम्मान था। साइकिल से सिविक तक के सफर में तन्विक का एक ही हमसफ़र रहा है।
"100" तक पहुंचने का सफर "0" से ही शुरू
हम सब के दिल में कुछ बड़ा करने की चाह है परन्तु हम में से कई लोग शून्य से शुरुआत करने से हिचकिचाते हैं। किसी बड़े काम की शुरुआत बेशक छोटी हो पर तन्विक की कहानी इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कर्मठता और पुरुषार्थ के दम पर इंसान साईकिल से हौंडा सिविक का सफ़र तय कर सकता है।
अगर मेहनत और निष्ठा के साथ-साथ भगवन का आशीर्वाद भी हमारे साथ हो तो, उस व्यक्ति को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।