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नाभादास जी (Nabhadas)


भक्तमाल | श्री नाभादास जी
गुरु - श्री अग्रदास जी महाराज
अन्य नाम - नाभा जी
प्रसिद्ध ग्रंथ - भक्तमाल
आराध्य - भगवान श्री रामचंद्र
❀ श्री नाभादास जी प्रसिद्ध ग्रंथ भक्तमाल की टीका प्रियादास जी ने संवत्‌ 1769 में, सौ वर्ष बाद, लिखी थी।
❀ अपने गुरु अग्रदास के समान इन्होंने भी रामभक्ति संबंधी कविता की है।
❀ इस किंवदन्ती के अनुसार ब्रह्मा जी ही श्री नाभादास जी के रूप में प्रकट हुए ।

महाभागवत श्री नाभादास जी महाराज उच्च कोटि के संत हुए है जिन्होंने इस संसार में श्री भक्तमाल ग्रन्थ प्रकट किया । भगवान् के भक्तो के चरित्र इस ग्रन्थ में नाभाजी द्वारा स्मरण किये गए है । इस ग्रन्थ की यह विशेषता है की इसमें सभी संप्रदयाचार्यो एवं सभी सभी सम्प्रदायो के संतो का सामान भाव से श्रद्धापूर्वक संस्मरण श्री नाभा जी ने किया है ।
संत तो प्रियतम के भी प्रिय है , भगवान् अपने से अधिक भक्तो को आदर देते है ।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है - मोते संत अधिक कर लेखा । भगवान् से भी अधिक महिमा उनके भक्तो की है । गोस्वामी जी ने एक और पद में लिखा है
मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा । राम ते अधिक राम कर दासा ॥

भक्तमाल नाम का रहस्य :
जैसा की इसके भक्तमाल नाम से स्पष्ट है की यह ग्रन्थ भक्तो के परम पवित्र चरित्र रुपी पुष्पों की एक परम रमणीय माला के रूप में गुम्फित है और इस सरस सौरभमयी तथा कभी भी म्लान न होनेवाली सुमन मालिका को श्री हरि नित्य-निरंतर अपने श्री कंठ में धारण किये रहते है ।

जैसे माला में चार वस्तुएं मुख्य होती है - मणियाँ, सूत्र, सुमेरु और फुंदना (गुच्छा ) वैसे ही भक्तमाल में भक्तजन मणि है, भक्ति है सूत्र (जिसमे मणियाँ पिरोयी जाती है ), माला के ऊपर जो सुमेरु होता है वह श्री गुरुदेव है और सुमेरु का जो गाँठ रुपी गुच्छा है वह है हमारे श्री भगवान् ।

भक्तमाल कोई सामान्य रचना नहीं है,अपितु यह एक आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है । यह श्री नाभादास जी की समाधि वाणी है । तपस्वी, सिद्ध एवं महान् संत की अहैतुकी कृपा और आशीर्वाद से इस ग्रन्थ का प्राकट्य हुआ है । महाभागवत नाभादास जी जन्म से नेत्रहीन थे , जब श्री गुरुदेव की कृपा से बालक को दृष्टी प्राप्त हुई तब सर्वप्रथम संसार का नहीं अपितु संत दर्शन ही किये ।

श्री नाभादास जी का वास्तविक स्वरुप :
एक बार ब्रह्मा जी ने व्रज के सब ग्वालबालों तथा गौओ और बछड़ो का हरण कर लिया था । इसपर भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया के प्रभाव से वैसे ही अन्य ग्वाल-बालों ,गौओं तथा बछड़ो की सृष्टि कर दी, व्रज के लोगो को इस बात का पता ही नहीं लगा । बाद में ब्रह्मा जी ने भगवान् श्रीकृष्ण से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी तो भगवान् ने उन्हें इतना ही दंड दिया की तुम कलियुग में नेत्रहीन होकर जन्म ग्रहण करोगे, किन्तु तुम्हारा यह अंधापन केवल पांच वर्ष तक ही रहेगा बाद में महात्माओ की कृपा से तुम्हे दिव्य दृष्टि प्राप्त होगी । इस किंवदन्ती के अनुसार ब्रह्मा जी ही श्री नाभादास जी के रूप में प्रकट हुए ।

जो अन्य युगों में भक्त प्रकट हुए उनके चरित्र पुराणों में उपलब्ध होते है परंतु विशेषतः कलिकाल के जो भक्त है उनके चरित्र पुराणों में उपलब्ध नहीं है अतः इन चरित्रों का विस्तार करने हेतु, शैव वैष्णव भेद समाप्त करने हेतु,संत सेवा, भगवान् के उत्सवो एवं व्रतो में निष्ठा हेतु, भक्त सेवा में अपराध से बचने हेतु और संत वेश निष्ठा प्रकट करने हेतु श्री नाभादास जी ने इस ग्रन्थ को प्रकट किया ।

Nabhadas in English

Guru - Shri Agradas Ji Maharaj | Other name - Nabha Ji | Famous Book - Bhaktamal | Aaradhya - Lord Shri Ramchandra
यह भी जानें
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आनंदमयी माँ

आनंदमयी माँ एक हिंदू संत थीं, जो 1896 से 1982 तक भारत में रहीं। वह अपने आनंदमय नृत्य और गायन और बीमारों को ठीक करने की क्षमता के लिए जानी जाती थीं। वह अद्वैत वेदांत की शिक्षिका भी थीं, एक हिंदू दर्शन जो सभी प्राणियों की एकता पर जोर देता है।

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शुकदेवजी, जिन्हें शुकदेव या शुक मुनि के नाम से भी जाना जाता है, एक महान ऋषि थे और कई हिंदू धर्मग्रंथों, विशेष रूप से भागवत पुराण में एक केंद्रीय व्यक्ति थे।

निश्चलानंद सरस्वती

स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती भारत के ओडिशा के पुरी में पूर्वमनय श्री गोवर्धन पीठम के वर्तमान 145 वें जगद्गुरु शंकराचार्य हैं।

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव एक प्रसिद्ध भारतीय योग शिक्षक हैं। उन्होंने योगासन और प्राणायाम योग के क्षेत्र में काफी योगदान दिया है। स्वामी रामदेव अब तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश-विदेश में करोड़ों लोगों को योग की शिक्षा दे चुके हैं। रामदेव खुद जगह-जगह योग शिविर लगाते हैं, जिनमें लगभग हर समुदाय के लोग आते हैं। स्वामी रामदेव टेलीविजन और अपने सामूहिक योग शिविरों के माध्यम से भारतीयों के बीच योग को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।

चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती

कांची कामकोटि पीठम के 68वें शंकराचार्य, परम पूज्य महास्वामीजी, श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य स्वामीजी, चलते-फिरते भगवान के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

ब्रह्मानंद स्वामी

ब्रह्मानंद स्वामी स्वामीनारायण संप्रदाय के संत और स्वामीनारायण भगवान के परमहंस में से एक के रूप में प्रतिष्ठित थे।

मातृश्री अनसूया देवी

मातृश्री अनुसूया देवी, एक युवा गृहिणी ने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए एक अनाज बैंक की स्थापना की, वह गांव में आने वाले हर व्यक्ति को भोजन देती थीं।

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