Shri Krishna Bhajan

गोपेश्वर महादेव की लीला (Gopeshwar Mahadev Leela Katha)


गोपेश्वर महादेव की लीला
Add To Favorites Change Font Size
एक बार शरद पूर्णिमा की शरत-उज्ज्वल चाँदनी में वंशीवट यमुना के किनारे श्याम सुंदर साक्षात मन्मथनाथ की वंशी बज उठी। श्रीकृष्ण ने छ: मास की एक रात्रि करके मन्मथ का मानमर्दन करने के लिए महारास किया था।
जब महारास की गूंज सारी त्रिलोकी में गई तो हमारे भोले बाबा के कानों में भी महारास की गूंज गई। मनमोहन की मीठी मुरली ने कैलाश पर विराजमान भगवान श्री शंकर को मोह लिया, समाधि भंग हो गयी। बाबा वृंदावन की ओर बावरे होकर चल पड़े।

पार्वती जी भी मनाकर हार गयीं, किंतु त्रिपुरारि माने नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त श्री आसुरि मुनि, पार्वती जी, नन्दी, श्रीगणेश, श्रीकार्तिकेय के साथ भगवान शंकर वृंदावन के वंशीवट पर आ गये। वंशीवट जहाँ महारास हो रहा था, वहाँ गोलोकवासिनी गोपियाँ द्वार पर खड़ी हुई थीं। पार्वती जी तो महारास में अंदर प्रवेश कर गयीं, किंतु द्वारपालिकाओं ने श्रीमहादेवजी और श्री आसुरि मुनि को अंदर जाने से रोक दिया, बोलीं, श्रेष्ठ जनों श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य कोई पुरुष इस एकांत महारास में प्रवेश नहीं कर सकता।

श्री शिवजी बोले: देवियों! हमें भी श्रीराधा-कृष्ण के दर्शनों की लालसा है, अत: आप ही लोग कोई उपाय बतलाइये, जिससे कि हम महाराज के दर्शन पा सकें?

ललितानामक सखी बोली: यदि आप महारास देखना चाहते हैं तो गोपी बन जाइए। मानसरोवर में स्नान कर गोपी का रूप धारण करके महारास में प्रवेश हुआ जा सकता है। फिर क्या था, भगवान शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये।

श्री यमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया, तो सुन्दर बिंदी, चूड़ी, नुपुर, ओढ़नी और ऊपर से एक हाथ का घूँघट भी भगवान शिव का कर दिया। साथ में युगल मन्त्र का उपदेश भगवान शिव के कान में किया हैं। प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश कर गये।

श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रासस्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्वमोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे। नटवर-वेषधारी, श्रीरासविहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्रीराधाजी एवं गोपियों को नृत्य एवं रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ता थैया कर नाच उठे। मोहन ने ऐसी मोहिनी वंशी बजायी कि सुधि-बुधि भूल गये भोलेनाथ। बनवारी से क्या कुछ छिपा है।

भगवान कृष्ण शिव के साथ थोड़ी देर तो नाचते रहे लेकिन जब पास पहुंचे तो भगवान बोले की रास के बीच थोड़ा हास-परिहास हो जाएं तो रास का आनंद दोगुना हो जायेगा। भगवान बोले की अरी गोपियों तुम मेरे साथ कितनी देर से नृत्य कर रही हो लेकिन मैंने तुम्हारा चेहरा देखा ही नहीं हैं। क्योंकि कुछ गोपियाँ घूंघट में भी हैं।

गोपियाँ बोली की प्यारे आपसे क्या छुपा हैं? आप देख लो हमारा चेहरा।

लेकिन जब भगवान शंकर ने सुना तो भगवान शंकर बोले कि ये कन्हैया को रास के बीच क्या सुझा, अच्छा भला रास चल रहा था मुख देखने की क्या जरुरत थी। ऐसा मन में सोच रहे थे कि आज कन्हैया फजीयत पर ही तुला है।

भगवान कृष्ण बोले की गोपियों तुम सब लाइन लगा कर खड़ी हो जाओ। और मैं सबका नंबर से दर्शन करूँगा।

भगवान शिव बोले अब तो काम बन गया। लाखों करोड़ों गोपियाँ हैं। मैं सबसे अंत में जाकर खड़ा हो जाऊंगा। कन्हैयाँ मुख देखते देखते थक जायेगा। और मेरा नंबर भी नही आएगा।

सभी गोपियाँ एक लाइन में खड़ी हो गई। और अंत में भगवान शिव खड़े हो गए।

जो कन्हैया की दृष्टि अंत में पड़ी तो कन्हैया बोले नंबर इधर से शुरू नही होगा नंबर उधर से शुरू होगा।

भगवान शिव बोले की कि ये तो मेरा ही नंबर आया। भगवान शिव दौड़कर दूसरी और जाने लगे तो भगवान कृष्ण गोपियों से बोले गोपियों पीछे किसी गोपी का मैं मुख दर्शन करूँगा पहले इस गोपी का मुख दर्शन करूँगा जो मुख दिखने में इतनी लाज शर्म कर रही हैं।

इतना कहकर भगवान शिव दौड़े और दौड़कर भगवान शिव को पकड़ लिया। और घूँघट ऊपर किया और कहा आओ गोपीश्वर आओ। आपकी जय हो। बोलिए गोपेश्वर महादेव की जय। शंकर भगवान की जय।

श्रीराधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं।
तब श्रीकृष्ण ने कहा: राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं। हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है।

तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, भगवन! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया?
भगवान शंकर बोले: प्रभो! आपकी यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है।

इस पर प्रसन्न होकर श्रीराधाजी ने श्रीमहादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्रीशिव जी ने यह वर माँगा: हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो। आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं।

इसके बाद सुन्दर महारास हुआ हैं। भगवान कृष्ण ने कत्थक नृत्य किया हैं और भगवान शिव ने तांडव। जिसका वर्णन अगर माँ सरस्वती भी करना चाहे तो नहीं कर सकती हैं। खूब आनंद आया हैं। भगवान कृष्ण ने ब्रह्मा की एक रात्रि ले ली है। लेकिन गोपियाँ इसे समझ नही पाई। केवल अपनी गोपियों के प्रेम के कारण कृष्ण ने रात्रि को बढाकर इतना दीर्घ कर दिया।

गोपियों ने एक रात कृष्ण के साथ अपने प्राणप्रिय पति के रूप में बिताई हैं लेकिन यह कोई साधारण रात नही थी। ब्रह्मा की रात्रि थी और लाखों वर्ष तक चलती रही। आज भी वृन्दावन में निधिवन में प्रतिदिन भगवान कृष्ण रास करते हैं। कृष्ण के लिए सब कुछ करना संभव हैं। क्योंकि वो भगवान हैं। इस प्रकार भगवान ने महारास लीला को किया है।

शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। और उसका ह्रदय रोग भी ठीक होता हैं।

रास पंचाध्यायी का आखिरी श्लोक इस बात की पुष्टि भी करता है।
विक्रीडितं व्रतवधुशिरिदं च विष्णों: श्रद्धान्वितोऽनुुणुयादथवर्णयेघः भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वहिनोत्यचिरेण धीरः

भगवान श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर कालिन्दी के निकट निकुंज के पास, वंशीवट के सम्मुख भगवान महादेवजी को श्रीगोपेश्वर महादेव के नाम से स्थापित कर विराजमान कर दिया। श्रीराधा-कृष्ण और गोपी-गोपियों ने उनकी पूजा की और कहा कि ब्रज-वृंदावन की यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब व्यक्ति आपके दर्शन कर लेगा। आपके दर्शन किये बिना यात्रा अधूरी रहेगी।

भगवान शंकर वृंदावन में आज भी गोपेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं और भक्तों को अपने दिव्य गोपी-वेष में दर्शन दे रहे हैं। गर्भगृह के बाहर पार्वतीजी, श्रीगणेश, श्रीनन्दी विराजमान हैं। आज भी संध्या के समय भगवान का गोपीवेश में दिव्य श्रृंगार होता है।
यह भी जानें

Katha Gopeshwar KathaMahadev KathaShiv Leela KathaKrishna Leela KathaBrij KathaRaas KathaJanmashtami KathaShri Krishna Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

कथाएँ ›

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 6

स्नान से पहले भगवान का ध्यान कर के स्नानार्थ संकल्प करना चाहिए फिर तीर्थ में उपस्थित देवताओं को क्रमश: अर्ध्य, आचमनीय आदि देना चाहिए।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 7

व्रती मनुष्य जहाँ कहीं भी रहता है वहीं पर उसकी पूजा होती है, उसका यश फैलता है। उसके निवास स्थान पर भूत, पिशाच आदि कोई भी नहीं रह पाते..

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 8

नारदजी बोले – अब मैं कार्तिक व्रत के उद्यापन का वर्णन करता हूँ जो सब पापों का नाश करने वाला है। व्रत का पालन करने वाला मनुष्य

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 5

जो मनुष्य उपरोक्त विधि के अनुसार कार्तिक व्रत का अनुष्ठान करते हैं वह जगत के सभी सुखों को भोगते हुए अन्त में मुक्ति को प्राप्त करते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

श्री गणेशाय नमः, प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे।

अहोई अष्टमी और राधाकुण्ड से जुड़ी कथा

बहुत समय पहले झाँसी के निकट एक नगर में चन्द्रभान नामक साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रिका बहुत सुंदर, सर्वगुण सम्पन्न, सती साध्वी, शिलवन्त चरित्रवान...

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 4

जो मनुष्य कार्तिक में तुलसी जी की जड़ के समीप श्रीहरि का पूजन करता है वह इस लोक में सम्पूर्ण भोगों का उपभोग कर के अन्त में वैकुण्ठ धाम को जाता है।

Shiv Chalisa - Shiv Chalisa
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP