प्राचीन श्री बटुक भैरव मंदिर पांडवों द्वारा बनाए गये मंदिरों मे सर्व प्रथम है। जिनके बिग्रह मे भैरव बाबा का चेहरा और दो बड़ी-बड़ी आँखों के साथ बाबा का त्रिशूल दिखाई पड़ता है।
पौराणिक कथा:
पांडवों ने अपने किले की सुरक्षा हेतु कई बार यज्ञ का आयोजन किया था। लेकिन राक्षस यज्ञ को बार-बार भंग कर दिया करते थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि किले की सुरक्षा हेतु भगवान भैरव को किले में स्थिपित करें। काशी जाकर, भीम ने बाबा की अराधना की और बाबा को इन्द्रप्रथ चलने का आग्रह किया।
बाबा ने भीम से कहा, जहां भी उन्हें पहले रख देगें वे वही विराजमान हो जाएंगे। भीम बाबा को कंधे पर बिठा कर इन्द्रप्रथ के लिए चल दिए, रास्ते मे किसी कारणवश भीम को बाबा भैरव को किसी मुसाफिर को थोड़ी देर के लिए देना पड़ा। लेकिन वह मुसाफिर भीम के आने का इंतजार किए बगैर भैरव जी को कुएँ के किनारे पर बैठाकर चला गया। भीम जब लौटकर आए तो उन्होने भैरव जी को उठाने की बहुत कोशिश की पर सफल नहीं हुए। भीम ने पुनः आग्रह किया और कहां की मैं अपने भाईयों को वचन दे कर आया हूँ।
भीम के प्रार्थना करने पर, भैरव बाबा ने उनको अपनी जटाएं दी, और कहा की इन जटाओं को अपने किले के पास स्थापित कर देना, संकट के समय ये जटाएं किलकारी करेंगी और मैं तुम्हारी रक्षा के लिए आ जाउंगा। वही मंदिर आज श्री किलकारी बाबा भैरव नाथ जी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
Temple is surrounded with the lot of greenery, therefore it is difficult to see temple`s shikhar from roadside.
Baba Batuknath offered jalebi by devotees. Only head of Shri Bhairav is shown as Murti.
Shikhar pic is taken from Nehru Park, in Red, orange and white theme.
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