प्राचीन, पुराणों मे वर्णित, त्रेता युग से ही स्थापित हिरण्यगर्भ सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव के स्वरूप को धारण किए यह मंदिर श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह शिवलिंग त्रेता युग मे श्री राम के जन्म से पहले माना जाता है। तथा मान्यता के अनुसार यहाँ रावण ने भी भगवान शिव की आराधना की है।
मंदिर परिसर के साथ ही गौशाला एवं प्रसिद्ध गुरुकुलम भी स्थापित है। महा शिवरात्रि, काँवड़ यात्रा तथा सावन/श्रावण के सोमवार मंदिर के सबसे बड़े त्यौहार हैं, जिसके अंतर्गत यहाँ लाखों की संख्या मे भक्तगण भोले बाबा के दर्शन के लिए आते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन संवत 1511 में यहाँ एक धूना गद्दी की स्थापना हुई। मंदिर परिसर मे अभी से पूर्व सभी गद्दीपती अर्थात प्रमुख महंत की समाधि स्थापित की गई है, तथा उन समाधियों पर महंतजी का नाम तथा कार्यकाल अंकित किया गया है।
मंदिर के बाहरी परिसर मे शनि धाम, नवग्रह धाम, गुरुकुलम, यज्ञशाला, गौशाला एवं संत निवास स्थित हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए नया बसअड्डा मेट्रो स्टेशन अत्यधिक सुविधाजनक है। तथा गाज़ियाबाद रेलवे स्टेशन मंदिर से 1 किलो मीटर से भी कम दूरी पर स्थित है। यातायात की सुविधा की दृष्टि से मंदिर तक पहुँचना बस, मेट्रो तथा रेलवे से समान रूप से सुविधाजनक है।
हिरण्यगर्भ दूधेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा!
द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त अनेक ऐसे हिरण्यगर्भ शिवलिंग हैं, जिनका बड़ा अदभुत महातम्य है। इनमें से अनेक बड़े चमत्कारी और मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं तथा सिद्धपीठों में स्थापित हैं। ऐसे ही सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मंदिर के अतिपावन प्रांगण में स्थापित हैं। स्वयंभू हिरण्यगर्भ दूधेश्वर शिवलिंग। कथा को विस्तार मे पढ़ने के लिए क्लिक करें
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3 November 1454
मंदिर का पुनः प्रादुर्भाव
June 1979
श्री रामायण भवन - हरि कीर्तन सभा स्थापना