Shri Krishna Bhajan

क्या भोग लगाना पाखंड है? - प्रेरक कहानी (Kiya Bhog Lagana Pakhand Hai)


Add To Favorites Change Font Size
एक बार सन् 1989 में मैंने सुबह टीवी खोला तो जगत गुरु शंकराचार्य कांची कामकोटि जी से प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम चल रहा था।
एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि हम भगवान को भोग क्यों लगाते हैं। हम जो कुछ भी भगवान को चढ़ाते हैं,
1) उसमें से भगवान क्या खाते हैं?
2) क्या पीते हैं?
3) क्या हमारे चढ़ाए हुए पदार्थ के रुप रंग स्वाद या मात्रा में कोई परिवर्तन होता है?
4) यदि नहीं तो हम यह कर्म क्यों करते हैं, क्या यह पाखंड नहीं है?
5) यदि यह पाखंड है तो हम भोग लगाने का पाखंड क्यों करें?

मेरी भी जिज्ञासा बढ़ गई थी कि शायद प्रश्नकर्ता ने आज जगद्गुरु शंकराचार्य जी को बुरी तरह घेर लिया है देखूं क्या उत्तर देते हैं। किंतु जगद्गुरु शंकराचार्य जी तनिक भी विचलित नहीं हुए। बड़े ही शांत चित्त से उन्होंने उत्तर देना शुरू किया।

उन्होंने कहा यह समझने की बात है कि जब हम प्रभु को भोग लगाते हैं तो वह उसमें से क्या ग्रहण करते हैं।
मान लीजिए कि आप लड्डू लेकर भगवान को भोग चढ़ाने मंदिर जा रहे हैं और रास्ते में आपका जानने वाला कोई मिलता है और पूछता है यह क्या है तब आप उसे बताते हैं कि यह लड्डू है। फिर वह पूछता है कि किसका है? तब आप कहते हैं कि यह मेरा है।

फिर जब आप वही मिष्ठान्न प्रभु के श्री चरणों में रख कर उन्हें समर्पित कर देते हैं और उसे लेकर घर को चलते हैं तब फिर आपको जानने वाला कोई दूसरा मिलता है और वह पूछता है कि यह क्या है ?

तब आप कहते हैं कि यह प्रसाद है फिर वह पूछता है कि किसका है तब आप कहते हैं कि यह हनुमान जी का है।

अब समझने वाली बात यह है कि लड्डू वही है। उसके रंग रूप स्वाद परिमाण में कोई अंतर नहीं पड़ता है तो प्रभु ने उसमें से क्या ग्रहण किया कि उसका नाम बदल गया। वास्तव में प्रभु ने मनुष्य के मम-कार को हर लिया। यह मेरा है का जो भाव था, अहंकार था प्रभु के चरणों में समर्पित करते ही उसका हरण हो गया।

प्रभु को भोग लगाने से मनुष्य विनीत स्वभाव का बनता है शीलवान होता है। अहंकार रहित स्वच्छ और निर्मल चित्त मन का बनता है। इसलिए इसे पाखंड नहीं कहा जा सकता है।

यह मनोविज्ञान है, इतना सुन्दर उत्तर सुन कर मैं भाव विह्वल हो गया। कोटि-कोटि नमन है देश के संतों को जो हमें अज्ञानता से दूर ले जाते हैं और हमें ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करते हैं।
यह भी जानें

Prerak-kahani Bhog Prerak-kahaniShri Krishna Prerak-kahaniSant Prerak-kahaniShankaracharya Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

स्वर्ग, नरक सब अपने हाथ में ही है - प्रेरक कहानी

एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो गई, यमराज उसे लेने आये। महिला ने यमराज से पूछा: आप मुझे स्वर्ग ले जाएँगे या नरक।

रमणीय टटिया स्थान, वृंदावन - प्रेरक कहानी

स्थान: श्री रंग जी मंदिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। विशाल भूखंड पर फैला हुआ है...

कर भला तो हो भला - प्रेरक कहानी

गुप्ता जी, पेशे से व्यापारी थे। कस्बे से दुकान की दूरी महज़ 9 किलोमीटर थी। एकदम वीराने में थी उनकी दुकान कस्बे से वहाँ तक पहुंचने का साधन यदा कदा ही मिलता था

बिना श्रद्धा और विश्वास के, गंगा स्नान - प्रेरक कहानी

इसी दृष्टांत के अनुसार जो लोग बिना श्रद्धा और विश्वास के केवल दंभ के लिए गंगा स्नान करते हैं उन्हें वास्तविक फल नहीं मिलता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है।

भगवान चढ़ाया गया भोग कैसे खाते हैं? - प्रेरक कहानी

क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं? यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती?..

जब अर्जुन का घमंड चूर-चूर हुआ - प्रेरक कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण, अर्जुन साथ घूम रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी।

जब चंद देव ने लगाया गुरु रामदास को गले - सत्य कथा

जब गुरु नानक देव जी के वृद्ध पुत्र एवं 'उदासी' संप्रदाय के संस्थापक बाबा श्री चंद जी सिख संप्रदाय के चतुर्थ गुरु रामदास जी से मिलने आए ...

Aditya Hridaya Stotra - Aditya Hridaya Stotra
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP