Shri Hanuman Bhajan

पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 17 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 17)


पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 17
Add To Favorites Change Font Size
नारदजी बोले - हे कृपा के सिन्धु! उसके बाद जागृत अवस्था को प्राप्त उस राजा दृढ़धन्वा का क्या हुआ? सो मुझसे कहिये जिसके सुनने से पापों का नाश कहा गया है।
नारायणजी बोले - अपने पूर्व जन्म के चरित्र को सुनने से आश्चर्ययुक्त तथा और सुनने की इच्छा रखने वाले राजा दृढ़धन्वा से बाल्मीकि ऋषि फिर बोले।

बाल्मीकि मुनि बोले - इस तरह स्त्री के मुख से शीतल वाणी को सुनकर सुदेव शर्मा धैर्य धारण कर हरि भगवान्‌ में चित्त को लगाता हुआ दीर्घ श्वाास लेकर दीनमुख सुदेव शर्मा, जो होने वाला है वह होगा यह मन में निश्चय कर पुष्प समिधा आदि के लिये वन को गया।

इस प्रकार करते उस सुदेवशर्मा का कितना ही समय बीत गया। बाद किसी दिन समिधा, कुश, फल, पुष्प आदि के लेने के लिये वन को गया, वहाँ जाकर सुदेवशर्मा मन से हरि भगवान्‌ के चरणकमलों का ध्यान करने लगा। उसी दिन उसका लड़का शुकदेव अपने मित्रों के साथ बावली को गया। बावली में प्रवेश कर समवयस्क मित्रों के साथ जलयन्त्रों से जल फेंकता हुआ और बार-बार हँसता हुआ खेलने लगा। गर्मी के ऋतु में बार-बार जल में खेलता हुआ हर्ष को प्राप्त हुआ। इस तरह प्रेम में मग्न सब बालकों से खेल करते हुए अथाह जल में खड़ा हुआ वह शुकदेव बालक मित्र बालकों से पीड़ित होकर मित्र-वर्ग के भय से भागने की इच्छा करता हुआ, और भाग्य से प्रेरित हो अपने श्वाँस को रोक कर अपने मित्रों को छलने की इच्छा से वहाँ अथाह जल में गोता लगाया। किन्तु उस जल में व्याकुल होकर उससे बाहर निकलने की इच्छा करता सहसा उस अथाह जल में वह बालक मृत्यु को प्राप्त हो गया।

जल से निकलते हुए बालक को न देखकर, वे सब समवयस्क मित्र बालक चकित होकर हाहाकार करते हुए बहुत जोर से दौड़े, और अत्यन्त शोक से ग्रस्त वे बालक उसकी माता गौतमी से जाकर बोले। उन बालकों के अत्यन्त अप्रिय वज्रपात के समान वचन को सुनकर पुत्र में प्रेम करने वाली वह गौतमी तुरन्त पृथिवी पर गिर गई। उसी समय वन से सुदेवशर्मा आया। पुत्र का मरण सुनकर कटे वृक्ष के समान पृथिवी पर गिर गया

बाद दोनों ब्राह्मण स्त्री-पुरुष उठकर बावली को गये। वहाँ जाकर मृत पुत्र का आलिंगन कर उसके शरीर को गोद में लेकर सुदेवशर्मा बारम्बार पुत्र का मुख चूमने लगा। अपने गोद में स्थित मृत पुत्र को बार-बार देखता हुआ, रोता-विलाप करता, गद्‌गद अक्षर से बोला।

सुदेवशर्मा बोला - हे पुत्र! मेरे शोक को नाश करने वाले, शीतल, सुन्दर और शुभ वचन को बोलो। हे वत्स! मेरे मन को प्रसन्न करो। वृद्ध माता-पिता को छोड़कर तुम जाने के योग्य नहीं हो। हे वत्स! वेदाध्ययन के लिये तुम्हारा श्रेष्ठ मित्र बुला रहा है, और बड़े हर्ष से पढ़ाने के लिये उपाध्याय तुमको बुला रहे हैं। हे पुत्र! शीघ्र उठो। इस समय क्यों सो रहे हो?

तुमको छोड़कर घर नहीं जाऊँगा। घर में मेरा क्या काम है?। तुम्हारे बिना इस समय मेरा घर शून्य जंगल के समान हो गया है। तुमको फल मूल प्रिय हो तो मेरे सामने से उठो। यदि नहीं उठोगे तो वन को भी नहीं जाऊँगा। वन में क्या काम है?
मैंने कोई निन्दित काम नहीं किया और ब्रह्महत्या भी नहीं की फिर किस कर्म के फल से मेरा पुत्र मर गया। अहो! ब्रह्मा! तुमने ऐसा करके कौन-सा बड़ा फल प्राप्त किया? हे निर्दय! वृद्ध, दीन मेरे नेत्र को लेकर, निर्धन का धन और दोनों स्त्री-पुरुषों का सहारा इस पुत्र को हरण करते तुमको लज्जा? क्यों नहीं होती? सर्वत्र तुम दयालु हो परन्तु मेरे विषय में निर्दय हो गये, सो क्यों? अहो! आश्चर्य है। मेरे भाग्य से यह उलटा कैसे हुआ है। स्वभाव से सुन्दर पुत्र की खोज इस समय मैं कहाँ करूँ? हे पुत्र! तुम्हारे मुख और सुन्दर नेत्र को कहाँ देखूँगा।

मेघ जल को बरसाता है। पृथिवी धान्य को पैदा करती है। पर्वत रत्नों को और समुद्र मुक्तासार मणि को देते हैं। परन्तु उस देश को नहीं देखता हूँ जहाँ मरा हुआ पुत्र मिलता हो। जिसके शरीर का आलिंगन कर हृदय के ताप को छोड़ता है।

हे वत्स! तुम एक बार शीघ्र वचन सुनाओ और दया करो। तुम्हारी माता लज्जा छोड़कर चील्ह के समान अत्यन्त विलाप करती है। हे पुत्र! उसको देख कर तुमको दया क्यों नहीं पैदा होती है? माता-पिता की आज्ञा बिना तुम कभी भी नहीं गये। हे पुत्र! हम दोनों से बिना पूछे ही दूर के मार्ग को गये हो क्या? इस समय किसके वेदाध्ययन की उत्तम वाणी को सुनूँगा। हे वत्स! आज तुम्हारे और तुम्हारे मनोहर मधुर वचन के स्मरण से मेरा हृदय सौ-सौ टुकड़ा नहीं हो रहा है। क्योंकि मेरा हृदय लोहे के समान है।

हे कोशलेन्द्र! राजा दशरथ! तुमको हम धन्य मानते हैं क्योंकि रामचन्द्र के वन जाने पर पुत्र के ताप से दग्ध वे प्राणों को नहीं रख सके। परन्तु पुत्र के मर जाने पर भी जीवित रहनेवाले मुझको धिक्काकर है।

हे गोविन्द! हे विष्णो! हे यदुनाथ! हे नाथ! हे श्रीरुक्मिणी के प्राणपति! हे मुरारे! हे दीन पर दया करनेवाले! हे दयालो! पुत्ररूप अग्नि के ताप से सन्तप्त मेरी रक्षा करो।

हे देवादिदेव! हे समस्त लोक के नाथ! हे गोपाल! हे गोपीश! हे चक्र को हाथ में धारण करने वाले! हे यमुना के विष-दोष को हरनेवाले! पुत्र रूप अग्नि के ताप से सन्तप्त मेरी रक्षा करो।

हे बैकुण्ठ के वासी विष्णो! हे नरकासुर के नाशक! हे चराचर के आधार! हे संसार रूप समुद्र से पार करने के लिए जहाज रूप! अर्थात्‌ संसार समुद्र से पार उतारने वाले! हे ब्राह्मादि देवताओं से नमस्कृत चरणपीठ वाले! पुत्ररूप अग्नि के ताप से सन्तप्त मेरी रक्षा करो।

हमारे समान शठ दूसरा कोई नहीं है जो मैंने देवकीपुत्र श्रीकृष्णचन्द्र के वचनों का उल्लंघन कर पुत्र में दुराशा की। कौन अभागा पुरुष भाग्य में न रहने वाली वस्तु को प्राप्त कर सकता है।

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये सप्तदशोऽध्यायः ॥१७॥
यह भी जानें

Katha Purushottam Mas KathaMal Mas KathaAdhik Mas KathaShri Hari Sharnam Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

देवशयनी एकादशी व्रत कथा

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है।...

रोहिणी शकट भेदन, दशरथ रचित शनि स्तोत्र कथा

प्राचीन काल में दशरथ नामक प्रसिद्ध चक्रवती राजा हुए थे। राजा के कार्य से राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी...

जगन्नाथ महाप्रभु का महा रहस्य

महाप्रभु जगन्नाथ को कलियुग का भगवान भी कहते है. पुरी (उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है.मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है

आशा दशमी पौराणिक व्रत कथा

आशा दशमी की पौराणिक व्रत कथा, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी, इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में निषध देश में एक राजा राज्य करते थे, जिनका नाम नल था।

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा

संतोषी माता व्रत कथा | सातवें बेटे का परदेश जाना | परदेश मे नौकरी | पति की अनुपस्थिति में अत्याचार | संतोषी माता का व्रत | संतोषी माता व्रत विधि | माँ संतोषी का दर्शन | शुक्रवार व्रत में भूल | माँ संतोषी से माँगी माफी | शुक्रवार व्रत का उद्यापन

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

तेजादशमी कथा

वीर तेजाजी लोकदेवता, कृषि कार्यो के उपकारक देवता, प्रणवीर, युद्धवीर, सत्यवीर, परमार्थी, वीर शिरोमणि थे।

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Achyutam Keshavam - Achyutam Keshavam
Bhakti Bharat APP