
श्री रुक्मणी देवी मंदिर भगवान कृष्ण की प्रमुख पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में माता रुक्मणी का चतुर्भुजी सुंदर विग्रह है, माता इस विग्रह रूप में शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण किए हुए हैं।
मंदिर के शिखर पर लहराता विशाल ध्वज मंदिर की शोभा को दूर से ही सुशोभित करता है। शिखर पर यह ध्वजा प्रत्येक दिन तिथि एवं त्यौहारों के अनुरूप बदले जाने हैं। द्वारका के अधिकतर मंदिरों की ही तरह माता रुक्मिणी का यह मंदिर भी बलुआ पत्थर से निर्मित है।
द्वारका धाम की यात्रा करने वाले भक्तों के लिए कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन के बिना यह यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है। मंदिर के गर्भग्रह में दर्शन से पहिले मंदिर के महंतों के द्वारा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाओं एवं मान्यताओं का विस्तार से वर्णन किया जाता है। इसके साथ-साथ दान से जुड़ी अवधारणाओं के बारे में भी बताया जाता है।
मंदिर का सबसे लोकप्रिय एवं धूम-धाम से मनाया जाने वाला त्यौहार निर्जला एकादशी है इसे रुक्मिणी हरण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। रुक्मणी देवी मंदिर में पीने के पानी का दान सबसे बड़ा महत्वपूर्ण दान माना जाता है। अतः मंदिर में भक्त 1001, 1100 लीटर अथवा अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार पानी का दान करते हैं। मंदिर के चारों ओर पेय जल की भारी कमी, हमें जल की महत्ता को समझाने क लिए प्रेरित करती है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा बेट द्वारका जाते समय देवी रुक्मिणी का यह मंदिर द्वारका से निकलते ही रास्ते में ही पड़ता है। मंदिर द्वारका से बाहरी ओर लगभग 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर की दीवारों पर हाथी, घोड़े, देव और मानव मूर्तियाँ की नक्काशी की गई है। वर्तमान मंदिर का अस्तित्व 12 वीं शताब्दी की संरचना माना जाता है।

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Sadhu at Temple

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