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तीर्थराज मुचुकुन्द - Tirthraj Muchkund

मुख्य आकर्षण - Key Highlights

◉ 108 प्राचीन मंदिरों की श्रृंखला।
◉ पवित्र सरोवर के चारों ओर 1 किलो मीटर परिक्रमा मार्ग।
◉ हर अमावस्या पर संपूर्ण तीर्थ की परिक्रमा।
◉ हर पूर्णिमा पर कुंड की पूजा-आरती।
◉ सन् 1612 से शेर शिकार गुरुद्वारा।

सभी तीर्थों के भान्जे की उपाधि से सुशोभित, एक बड़े पवित्र तालाब के चारों ओर घिरे 108 मंदिरों की श्रृंखला का नाम है तीर्थराज मुचुकुन्द। भगवान श्री राम से उन्नीस पीढ़ी पहले, 24वें सूर्यवंशी राजा मुचुकंद के नाम से पहचाना जाता है यह पवित्र क्षेत्र।

दीपावली उत्सव पर मंदिर के आस-पास विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, मेले मे आने वाले श्रद्धालु भक्त कुंड में स्नान करते हैं।

धौलपुर के जी.टी. रोड से तीन किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखलाओं की गोद में स्थित है सुरम्य प्राकृतिक सरोवर मुचुकुण्द। इसे पूर्वाचल का पुष्कर कहा जाये तो कोई अतिष्योक्ति नहीं होगी। कुण्ड का सुरम्य स्वरूप व मन्दिरों का निर्माण 1856 में महाराजा भगवन्त सिंह जी के कार्यकाल की देन है। यह स्थल मान्धता के पुत्र महाराज मुचुकुण्द और भगवान कृष्ण के जहाँ आगतन की गवाही दे रहा है।

इसका उल्लेख विष्णु पुराण के पंचम अंश के 23वें अध्याय में व श्रीमद् भागवत के दशम स्कंद के 51वें अध्याय में भी मिलता हैं।

तेनानुयातः कृष्णोऽपि प्रविवेश महागुहाम् ।
यत्र शेते महावीर्यो मुचुकुन्दो नरेश्वरः ॥ [विष्णु पुराण 5/23/18]
भावार्थ- कालयमन से पीछा किए जाते हुए श्री कृष्णचंद्र उस महा गुहा में घुस गये जिसमें महावीर्य राजा मुचुकुन्द सो रहे थे।

स हि देवासुरे युद्धे गतो हत्वा महासुरान् ।
निद्रार्तः सुमहाकालं निद्रां वव्रे वरं सुरान् ॥ [विष्णु पुराण 5/23/22]
भावार्थ- पूर्वकाल में राजा मुचुकुन्द देवताओं की ओर से देवासुर संग्राम मे गये थे, असुरों को मार चुकने पर अत्यन्त निद्रालु होने के कारण उन्होने देवताओं से बहुत समय तक सोने का वर माँगा था।


प्रोक्तश्च देवैः संसुप्तं यस्त्वामुत्थापयिष्यति ।
देहजेनाग्निना सद्यः स तु भस्मीभविष्यति ॥ [विष्णु पुराण 5/23/23]
भावार्थ- उस समय देवताओं ने कहा था कि तुम्हारे शयन करने पर तुम्हें जो कोई जगावेगा वह तुरंत ही अपने शरीर से उत्पन्न हुई अग्नि से जलकर भस्म हो जाएगा।

प्रचलित नाम: तीर्थराज मचकुण्ड

समय - Timings

दर्शन समय
5:00 AM - 12:00 PM, 4:00 PM - 9:00 PM

तीर्थराज मुचुकुण्द का इतिहास

तीर्थराज मुचुकुण्द का मुख्य आकर्षण चार मन्दिरों में निहित है।

1. लाडली जगमोहन मन्दिर
मुचुकुण्द के पूर्वी-दक्षिणी घाट पर स्थित तीन मंजिल का यह विषाल मन्दिर धौलपुर के लाल पत्थरों से जड़ित है और षिल्पकला व नक्काषी का नायाब नमूना है। रियासत दीवान राजधरजू कन्हैयालालजी ने राज खजाने से इस मन्दिर क निर्माण कराया था। इस मन्दिर की स्थापना अषाढ़ कृष्ण चतुर्थी सम्वत् 1899 को की गई थी। मन्दिर में प्रवेश के बाद चौक से करीब तीन फीट ऊॅचाई पर लाडली जगमोहन का गर्भग्रह है। भगवान श्री कृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को उठा कर ग्वाल बालों की रक्षा की। साथ ही बांसुरी बजाकर गोकुलवासिंयों को इस कदर मोहित किया कि वे इन्द्र के भय को भूल गये। तब कृष्ण जगमोहन कहलायें। चौक मे मध्य करीब 7 फीट ऊॅचाई पर अष्टकोण में षिवालय है जहाँ पंचमुखी शिवलिंग, शिव परिवार के साथ स्थापित है। षिवालय के दाहिनी ओर हनुमानजी व राम जानकी, बलराम विराजमान है। लाड़ली जगमोहन मन्दिर की ओर से हर माह की पूर्णिमा के अवसर पर मुचुकुण्द में दीपदान और माहआरती के बाद भण्डारा आयोजित किया जाता है। तथा अमावस्या को तीर्थराज मुचुकुण्द सरोवर की परिक्रमा का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण जन्मोत्सव विषेष पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।

2. राजगुरू मन्दिर
तीर्थराज मुचुकुन्द के दक्षिण में स्थित इस मन्दिर में श्री जगन्नाथ जी महाराज की स्थापना सम्वत् 1898 के लगभग महाराजा भगवन्त सिंह जी द्वारा कराई गई। इस मन्दिर में मुख्य विग्रह श्री जगन्नाथ जी महाराज, श्री वलरामजी महाराज उनकी बहन सुभ्रदा जी, रामचंद्रजी, श्री लक्ष्मण जी, श्री जानकी सहित अनेक विग्रह सिंघासन पर सुषोभित है। इस मन्दिर को वैकुंठ वासी महाराजा भगवन्त सिंह जी के द्वारा राजगुरू मन्दिर की उपाधि दी गई थी इस कारण इस मन्दिर को राजगुरू मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

3. मन्दिर रानीगुरू
मन्दिर श्री मदनमोहन जी मुचुकुण्द सरोवर के अग्नि कोण में स्थापित हैं। इस मन्दिर की स्थापना संवत् 1899 के करीब तत्कालीन महारानी धौलपुर विदोखरनी के द्वारा कर्राइ गई थी। इस मन्दिर में विग्रह श्री मदनमोहन जी एवं श्री राधाजी, अनेक विग्रहों सहित गर्भगृह में स्थापित हैं। इस मन्दिर को महारानी जी के द्वारा रानीगुरू की उपाधि दी गई थी। इसी कारण आज इस मन्दिर को रानीगुरू मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

4. शेर शिकार गुरूद्वारा
मुचुकुण्द सरोवर के किनारे पर सिक्ख धर्मावलम्बियों का धार्मिक स्थल है जो शेर शिकार गुरूद्वारा के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि 4 मार्च 1612 को सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द सिंह जी ग्वालियर से जाते समय जहाँ ठहरे थ। उस समय जहाँ घना जंगल था। उन्होने अपनी तलवार के एक ही वार से जहाँ शेर का शिकार किया था। इस लिए इस गरूद्वारे को शेर शिकार गुरूद्वारा कहा जाता है।
(Source: dholpur.rajasthan.gov.in)

राजा मुचुकुन्द की कथा

त्रेता युग में महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए, अमरीष, पुरू और मुचुकुन्द। युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचुकुन्द को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय श्री मिलने के बाद महाराज मुचुकुन्द ने विश्राम की इच्छा प्रकट की। देवताओं ने वरदान दिया कि जो तुम्हारे विश्राम में अवरोध डालेगा, वह तुम्हारी नेत्र ज्योति से वहीं भस्म हो जायेगा। ..राजा मुचुकुन्द की कथा को हिन्दी मे पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇
📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/raja-muchkund-ki-katha

Tirthraj Muchkund in English

The nephew of all Teerth, Tirthraj Muchkund series of 108 temples surrounded around a large holy pond.
Due to name of 24th Suryavanshi Raja Muchukand, nineteen generations before Lord Shri Ram.

फोटो प्रदर्शनी - Photo Gallery

Photo in Full View
Gauri Shankar, Madan Mohan Mandir

Gauri Shankar, Madan Mohan Mandir

Out Side, Madan Mohan Mandir

Out Side, Madan Mohan Mandir

Hanumanji, Madan Mohan Mandir

Hanumanji, Madan Mohan Mandir

Madan Mohan Mandir Dwar

Madan Mohan Mandir Dwar

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

Panchmukhi Shivling in Ladli Jagmohan Mandir Muchkund.

Panchmukhi Shivling in Ladli Jagmohan Mandir Muchkund.

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

Shri Madan Mohan Ji

Shri Madan Mohan Ji

Madan Mohan Mandir

Madan Mohan Mandir

Muchkund Sarovar

Muchkund Sarovar

Shri Hanuman Ji Maharaj

Shri Hanuman Ji Maharaj

Shri Hanuman Ji Maharaj

Shri Hanuman Ji Maharaj

Shivling With Muchkund Sarovar

Shivling With Muchkund Sarovar

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

तीर्थराज मुचुकुन्द

Shri Madan Mohan Ji

Shri Madan Mohan Ji

जानकारियां - Information

धाम
Ladli Jagmohan Mandir:
Rajguru Mandir:
Shri Raniguru Mandir:
Sher Shikar Gurudwara: Guru Shri Hargobind Ji
YagyashalaMaa TulasiPeepal TreeBanyan TreeBanana TreeMango TreeKadamb TreeGuava Tree
बुनियादी सेवाएं
Prasad, Prasad Shop, Water Coolar, Power Backup, Office, Shoe Store, Childrens Park, Free Parking, Washroom, Solar Light
धर्मार्थ सेवाएं
गुरुकुल, गौशाला, औषधालय
संस्थापक
राजा मुचुकुन्द
स्थापना
महाभारत काल
देख-रेख संस्था
भारत सरकार
समर्पित
श्री कृष्ण
क्षेत्रफल
3 Acre
फोटोग्राफी
🚫 नहीं (मंदिर के अंदर तस्वीर लेना अ-नैतिक है जबकि कोई पूजा करने में व्यस्त है! कृपया मंदिर के नियमों और सुझावों का भी पालन करें।)
नि:शुल्क प्रवेश
हाँ जी

क्रमवद्ध - Timeline

Before Ramayan Period

Raja Muchkund start sleeping near to this holy place.

Before Mahabharata Period

Raja Muchkund organized a Yagya on this place.

4 March, 1612

While travelling towards Gwalior, Guru Hargobind arrived at Machkund and stayed in Bhamtipura village.

वीडियो - Video Gallery

कैसे पहुचें - How To Reach

सड़क/मार्ग 🚗
Chennai-Delhi Highway NH44 >> Machkund Road
रेलवे 🚉
Dholpur Junction
हवा मार्ग ✈
Pandit Deen Dayal Upadhyay Airport, Agra
नदी ⛵
Chambal
सोशल मीडिया
निर्देशांक 🌐
26.679938°N, 77.865338°E
तीर्थराज मुचुकुन्द गूगल के मानचित्र पर
http://www.bhaktibharat.com/mandir/tirthraj-muchkund

अगला मंदिर दर्शन - Next Darshan

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