Haanuman Bhajan

भक्त के अधीन भगवान - अनाथ बालक की कहानी (Bhakt Ke Adheen Bhagawan Anath Balak Ki Kahani)


Add To Favorites Change Font Size
एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम मे आया और बोला कि बाबा आप सबका ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मे कोई नहीं हैं तो क्या मैं यहाँ आपके आश्रम मे रह सकता हूँ ?
बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?
उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीं हैं।
तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले कि अब तुम यहीं आश्रम मे रहना।
रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा।
उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकि थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले कि मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना हैं तुम मे से कौन कौन मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मे रुकेगा ?
संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले कि हम आपके साथ चलेंगे! क्योंकि उनको पता था कि यहाँ आश्रम मे रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये सभी बोले कि हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे।
अब संत सोच मे पड़ गये कि किसे साथ ले जाये और किसे नहीं क्योंकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था।

बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैं यहीं आश्रम पर रुक जाता हूँ।
संत ने कहा ठीक है पर तुझे काम करना पड़ेगा, आश्रम की साफ सफाई मे भले ही कमी रह जाये पर ठाकुर जी की सेवा मे कोई कमी मत रखना।
रामदास ने संत से कहा कि बाबा मुझे तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीं आती आप बता दीजिये कि ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैं कर दूँगा।

संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये वहाँ उस मंदिर मे राम दरबार की झाँकी थी। जिसमे श्रीराम जी, सीता जी, लक्ष्मणजी और हनुमान जी थे। संत ने बालक रामदास को ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है सब सिखा दिया।

रामदास ने गुरु जी से कहा कि बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो क्योंकि अगर रिश्ता पता चल जाये तो सेवा करने मे आनंद आयेगा।
उन संत ने बालक रामदास से कहा कि तुम कहते थे कि मेरा कोई नहीं है तो आज से ये रामजी और सीताजी तेरे माता-पिता हैं।
रामदास ने साथ मे खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास मे खड़े हैं वो कौन हैं?
संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैं और हनुमान जी के लिये कहा कि ये तेरे बड़े भैय्या है।
रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा। संत शिष्यों के साथ यात्रा पर चले गये।
आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया और भिक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया।
रामदास ने श्रीराम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी के आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैं भी खाऊँगा।
रामदास को लगा कि सच मे भगवान बैठकर खायेंगे। पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी। तब बालक रामदास ने सोचा नया-नया रिशता बना हैं तो शर्मा रहे होंगे। रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मे खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पड़ा था।

अब तो रामदास रोने लगा कि मुझसे सेवा मे कोई गलती हो गई इसलिये खाना नहीं खा रहे हैं !
और ये नहीं खायेंगे तो मैं भी नहीं खाऊँगा और मैं भूख से मर जाऊँगा!
इसलिये मैं तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर जाऊँगा।
रामदास मरने के लिये निकल जाता है तब भगवान रामजी हनुमान जी को कहते हैं हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो कि हम खाना खाने के लिये तैयार हैं।
हनुमान जी जाते हैं और रामदास कूदने ही वाला होता है कि हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते हैं और बोलते हैं क्या कर रहे हो? रामदास कहता है आप कौन?
हनुमान जी कहते हैं मैं तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये?
रामदास कहता है अब आये हो इतनी देर से वहाँ बोल रहा था कि खाना खालो तब आये नहीं अब क्यों आगये ?

तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश हैं अब हम सब साथ बैठकर खाना खाएंगे। फिर रामजी, सीताजी, लक्ष्मणजी, हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते हैं। इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता। सेवा करते 15 दिन हो गये एक दिन रामदास ने सोचा कि कोई भी माँ-बाप हो वो घर मे काम तो करते ही हैं।

पर मेरे माँ बाप तो कोई काम नहीं करते सारे दिन खाते रहते हैं। मैं ऐसा नहीं चलने दूँगा। रामदास मंदिर जाता हैं ओर कहता हैं पिता जी कुछ बात करनी हैं आपसे।
रामजी कहते हैं बोल बेटा क्या बात है?
रामदास कहता है कि अब से मैं अकेले काम नहीं करूँगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा, आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैं काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीं होगा।

राम जी कहते हैं तो फिर बताओ बेटा हमे क्या काम करना है ?
रामदास ने कहा माता जी (सीताजी) अब से रसोई आपके हवाले। और चाचा जी (लक्ष्मणजी) आप सब्जी तोड़कर लाओँगे।
और भैय्या जी (हनुमान जी) आप लकड़ियाँ लायेगे। और पिता जी (रामजी) आप पत्तल बनाओँगे।
सबने कहा ठीक हैं।

अब सभी साथ मिलकर काम करते हुए एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगे। एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सीधा मंदिर मे गये और देखा कि मंदिर से प्रतिमाएं गायब हैं।
संत ने सोचा कहीं रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीं दी ? संत ने रामदास को बुलाया और पूछा भगवान कहाँ गये?
रामदास भी अकड़कर बोला कि मुझे क्या पता रसोई मे कही काम कर रहे होंगे।
संत बोले ये क्या बोल रहा है?
रामदास ने कहा बाबा मैं सच बोल रहा हूँ जबसे आप गये हैं ये चारों काम मे लगे हुए हैं।
वो संत भागकर रसोई मे गये और सिर्फ एक झलक देखी कि सीता जी भोजन बना रही हैं रामजी पत्तल बना रहे है और फिर वो गायब हो गये और मंदिर मे विराजमान हो गये।
संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तु धन्य हैं। और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये।

कहने का अर्थ यही है कि ठाकुर जी तो आज भी तैयार हैं दर्शन देने केलिये पर कोई रामदास जैसा भक्त भी तो होना चाहिए।
यह भी जानें

Prerak-kahani Bhakt Prerak-kahaniShri Ra Bhakt Prerak-kahaniAnath Balak Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

छोटी सी गौरैया का श्रीकृष्ण पर विश्वास - प्रेरक कहानी

भगवन बोले: अपने घोंसले में तीन सप्ताह के लिए भोजन का संग्रह करो। आइये हम भी तब तक इस घंटी के नीचे विश्राम करे जब तक ये हमारे लिए उठाई ना जाये...

सेवभाव में स्नेह के आँसू - प्रेरक कहानी

सब्जी वाले ने तीसरी मंजिल की घंटी का बटन दबाया। ऊपर बालकनी का दरवाजा खोलकर बाहर आई महिला ने नीचे देखा।

सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता - प्रेरक कहानी

एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि राम कहे तो बंधन टूटे। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, यूं मत कहो रे पंडित झूठे।

गुरु नानक जी के आशीर्वाद का रहस्य - प्रेरक कहानी

एक बार गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ एक ऐसे गांव में पहुंचे जहां के लोग साधु-संन्यासी लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे...

ऐसे ही होने चाहिए गुरु - प्रेरक कहानी

वह उनके चरण स्पर्श कर अपना परिचय देता है। वे बड़े प्यार से पुछती है, अरे वाह, आप मेरे विद्यार्थी रहे है, अभी क्या करते हो, क्या बन गए हो?

गुरु गूंगे, गुरु बावरे, गुरु के रहिये दास! - Guru Purnima Special - प्रेरक कहानी

गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास, गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग कि रखिये आस!

प्रत्येक मनुष्य में अच्छाई और बुराई है - प्रेरक कहानी

गुरु द्रोणाचार्य ने शिक्षा पूरी होने पर कौरव और पांडव के राजकुमारों दुर्योधन और युधिष्ठिर को परीक्षा के लिए बुलाया...

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Bhakti Bharat APP