Shri Ram Bhajan

दो बहते पत्तों की कहानी - प्रेरक कहानी (Do Bahate Patton Ki Kahani)


Add To Favorites Change Font Size
एक समय की बात है, गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे।
एक पत्ता आड़ा गिरा और एक सीधा। जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा - आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा। चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।

वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा - रुक जा गंगा, अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती, मैं तुझे यहीं रोक दूंगा।

पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी, उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है।

पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी। वो लगातार संघर्ष कर रहा था। नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीं पहुंचेगा, जहाँ लड़कर, थककर, हारकर पहुंचेगी पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का उसके संताप का काल बन जाएगा।

वहीं दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था। यह कहता हुआ कि - चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा। चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा, तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।

नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं, वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढ़ती जा रही थी। पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है।

आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं, नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है! पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का उसके आनंद का काल बन जाएगा।

जो पत्ता नदी से लड़ रहा है, उसे रोक रहा है, उसकी जीत की कोई संभावना नहीं है। और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार हो ये संभव नहीं है।

हमारा जीवन भी उस नदी के सामान है जिसमें सुख और दुःख की तेज़ धारायें बहती रहती हैं। और जो कोई जीवन की इस धारा को आड़े पत्ते की तरह रोकने का प्रयास भी करता है, तो वह मूर्ख है, क्योंकि ना तो कभी जीवन किसी के लिये रुका है और ना ही रुक सकता है।

वह अज्ञान में है जो आड़े पत्ते की तरह जीवन की इस बहती नदी में सुख की धारा को ठहराने या दुःख की धारा को जल्दी बहाने की मूर्खता पूर्ण कोशिश करता है।

सुख की धारा जितने दिन बहनी है, उतने दिन तक बहकर ही रहेगी, आप उसे बढ़ा नहीं सकते। और अगर आपके जीवन में दुःख का बहाव जितने समय तक के लिए आना है वो आ कर ही रहेगा, फिर क्यों आड़े पत्ते की तरह इसे रोकने की मेहनत की जाय। बल्कि जीवन में आने वाली हर अच्छी बुरी परिस्थितियों में खुश होकर जीवन की बहती धारा के साथ उस सीधे पत्ते की तरह ऐसे चलते जाओ, जैसे जीवन आपको नहीं बल्कि आप जीवन को चला रहे हो। सीधे पत्ते की तरह सुख और दुःख में समता और आनन्दित होकर जीवन की धारा में मौज से बहते जाएँ। और जब जीवन में ऐसी सहजता से चलना सीख गए तो फिर सुख क्या? और दुःख क्या ?

जीवन के बहाव में ऐसे ना बहें कि थक कर हार भी जाएं और अंत तक जीवन आपके लिए एक पहेली बन जाये। बल्कि जीवन के बहाव को हँसते-खेलते ऐसे बहाते जाएं कि अंत तक आप जीवन के लिए पहेली बन जायें।
यह भी जानें

Prerak-kahani Sukh-Dukh Prerak-kahaniFlawless Life Prerak-kahaniDo Patton Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

सच्चे देशभक्त की निष्ठा - प्रेरक कहानी

गुलजारीलाल नंदा को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था।

दो पैसे के काम के लिए तीस साल की बलि - प्रेरक कहानी

स्वामी विवेकानंद एक बार कहीं जा रहे थे। रास्ते में नदी पड़ी तो वे वहीं रुक गए क्योंकि नदी पार कराने वाली नाव कहीं गई हुई थी।...

भगवन को आपकी एक सुई की भी चिंता है - प्रेरक कहानी

एक गांव में कृष्णा बाई नाम की बुढ़िया रहती थी वह भगवान श्रीकृष्ण की परमभक्त थी। वह एक झोपड़ी में रहती थी।

शांति कहाँ मिलेगी - प्रेरक कहानी

एक समय कि बात है, भगवान विष्णु सभी जीवों को कुछ न कुछ चीजें भेट कर रहे थे। सभी जीव भेंट स्वीकार करते और खुशी-खुशी अपने निवास स्थान के लिए प्रस्थान करते।

...हम माँग नही पाते प्रभु से - प्रेरक कहानी

एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गांवो में घूम रहा था। घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया...

मैं सावंरे की कुदरत से हैरान हूँ - प्रेरक कहानी

वृंदावन शहर में एक वैघ थे, जिनका मकान भी बहुत पुराना था। वैघ साहब अपनी पत्नी को कहते कि जो तुम्हें चाहिए एक चिठ्ठी में लिख दो दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते।

राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न भाइयों का प्यार

राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के बचपन का एक प्रसंग है! जब ये लोग खेलते थे तो लक्ष्मण राम की तरफ उनके पीछे होता था..

Aditya Hridaya Stotra - Aditya Hridaya Stotra
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP