Shri Krishna Bhajan

जो आपका नहीं, उसके लिए दुख क्यों? - प्रेरक कहानी (Jo Apaka Nahi Usake Lie Dukh Kyon)


जो आपका नहीं, उसके लिए दुख क्यों? - प्रेरक कहानी
Add To Favorites Change Font Size
एक आदमी सागर के किनारे टहल रहा था। एकाएक उसकी नजर चांदी की एक छड़ी पर पड़ी, जो बहती-बहती किनारे आ लगी थी। वह खुश हुआ और झटपट छड़ी उठा ली। अब वह छड़ी लेकर टहलने लगा।
धूप चढ़ी तो उसका मन सागर में नहाने का हुआ। उसने सोचा, अगर छड़ी को किनारे रखकर नहाऊंगा, तो कोई ले जाएगा। इसलिए वह छड़ी हाथ में ही पकड़ कर नहाने लगा। तभी एक ऊंची लहर आई और तेजी से छड़ी को बहाकर ले गई। वह अफसोस करने लगा और दुखी हो कर तट पर आ बैठा।

उधर से एक संत आ रहे थे। उसे उदास देख पूछा, इतने दुखी क्यों हो? उसने बताया, स्वामी जी नहाते हुए मेरी चांदी की छड़ी सागर में बह गई। संत ने हैरानी जताई, छड़ी लेकर नहा रहे थे? वह बोला, क्या करता? किनारे रख कर नहाता, तो कोई ले जा सकता था।

लेकिन चांदी की छड़ी ले कर नहाने क्यों आए थे?: स्वामी जी ने पूछा।

ले कर नहीं आया था, वह तो यहीं पड़ी मिली थी: उसने बताया।

सुन कर स्वामी जी हंसने लगे और बोले: जब वह तुम्हारी थी ही नहीं, तो फिर दुख या उदासी कैसी?

कभी कुछ खुशियां अनायास मिल जाती हैं और कभी कुछ श्रम करने और कष्ट उठाने से मिलती हैं। जो खुशियां अनायास मिलती हैं, परमात्मा की ओर से मिलती हैं, उन्हें सराहने का हमारे पास समय नहीं होता।

इंसान व्यस्त है तमाम ऐसे सुखों की गिनती करने में, जो उसके पास नहीं हैं - आलीशान बंगला, शानदार कार, स्टेटस, पॉवर वगैरह और भूल जाता है कि एक दिन सब कुछ यूं ही छोड़कर उसे अगले सफर में निकल जाना है।
यह भी जानें

Prerak-kahani Sant Prerak-kahaniReal Life Prerak-kahaniChandi Ki Chadi Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

अहंकार का त्याग ही तपस्या का मूलमंत्र है - प्रेरक कहानी

निर्णय करने से पहले धर्मराज ने दोनों से कहा: मैं अपना निर्णय तो सुनाउंगा लेकिन यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो तो मैं अवसर देता हूं, कह सकते हो।...

आत्मविश्वास ना खोएं, ऊँचाइयाँ पाओगे - प्रेरक कहानी

एक बार एक युवक को संघर्ष करते-करते कई वर्ष हो गए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।...

भगवान् का विनिमय प्रस्ताव - प्रेरक कहानी

एक बार एक दुःखी भक्त अपने ईश्वर से शिकायत कर रहा था। आप मेरा ख्याल नहीं रखते, मैं आपका इतना बड़ा भक्त हूँ। आपकी सेवा करता हूँ, रात-दिन आपका स्मरण करता हूँ..

क्रोध मे हम, चिल्लाते क्यों हैं? - प्रेरक कहानी

जब वे लोग एक दुसरे से और ज्यादा प्रेम करते तब क्या होता हैं? वे कुछ बोलते नहीं बस फुसफुसाते हैं...

जिसका भी मनोबल जागा - प्रेरक कहानी

बचपन से ही उसे इस प्रकार से तैयार किया गया था कि युद्ध में शत्रु सैनिको को देखकर वो उनपर इस तरह टूट पड़ता कि देखते ही देखते शत्रु के पाँव उखड जाते।...

तुलसीदास जी द्वारा श्री रामचरितमानस की रचना - सत्य कथा

दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन मे श्रीरामचरित मानस की रचना समाप्त हुई। संवत् १६३३ मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।

श्री गणेश एवं बुढ़िया माई की कहानी

एक बुढ़िया माई थी। मिट्टी के गणेश जी की पूजा करती थी। रोज बनाए रोज गल जाए। एक सेठ का मकान बन रहा था..

Durga Chalisa - Durga Chalisa
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP